स्वदेशी आन्दोलन के बारे में विस्तृत जानकारी | History of Swadeshi Movement in Hindi

Swadeshi Movement History, Effects, Causes and Results in Hindi | स्वदेशी आन्दोलन का इतिहास, प्रभाव, कारण और परिणाम हिंदी में

भारत की स्वतंत्रता का आन्दोलन एक महत्वपूर्ण आन्दोलन था. जिसमें बहुत से आन्दोलनों का समावेश था. स्वदेशी आन्दोलन भी उस समय पनप रहा था. स्वदेशी का अर्थ हैं “अपने देश का”. शिक्षित स्वतंत्रता सेनानियों इस आन्दोलन के दूरगामी परिणाम को अच्छी तरह जानते थे.

स्वदेशी आन्दोलन का मुख्य उद्देश्य ब्रिटेन में बनी वस्तुओं का बहिष्कार करना था. जिससे लोग अधिक से अधिक स्वदेशी वस्तुओं को उपयोग में लाये. जिससे ब्रिटेन को आर्थिक रूप से नुकसान पहुँचाया जा सके और भारत में रोजगार उत्पन्न हो सके. गांधीजी ने स्वदेशी आन्दोलन को स्वराज की आत्मा भी कहा था. इस आन्दोलन के मुख्य राजनेता वीर सावरकर, लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक, महात्मा गांधी, लाला लाजपत राय, रवीन्द्रनाथ टैगोर और अरविन्द घोष थे.

बंगाल विभाजन और स्वदेशी आन्दोलन(Bangal Vibhajan and Swadeshi Movement)

राजनैतिक लाभ की दृष्टि से दिसम्बर 1903 में अंग्रेजो ने बंगाल विभाजन का प्रस्ताव पारित किया था. जिसकी खबर पूरे भारत में फैल गयी थी. इस प्रस्ताव के विरोध स्वरूप कई बैठके हुई. बंगाल के नेता सुरेन्द्रनाथ बनर्जी और पृथ्वीश चन्द्र राय ने “बंगाली”, “हितवादी”, एवं “संजीवनी” जैसे अखबारों द्वारा विभाजन के प्रस्ताव की आलोचना की. इस विभाजन का मुख्य उदेश्य भारत की अखंडता को नष्ट करना था. विरोध होने के बाद भी लार्ड कर्जन ने 19 जुलाई 1905 को बंगाल विभाजन की घोषणा कर दी. जिसके विरोध में ही 7 अगस्त 1905 को कलकत्ता के टाउन हाल में “स्वदेशी आन्दोलन” की घोषणा हुई और इस आन्दोलन में विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार का निर्णय लिया गया.

स्वदेशी आंदोलन का प्रभाव(Effect of Swadeshi Movement)

उदारवादी नेता इस आन्दोलन को बंगाल तक ही सीमित रखना चाहते थे. परन्तु उग्रवादियों ने उदारवादी नेताओ की इस नीति को अस्वीकार कर दिया. उदारवादी नेता इस आन्दोलन को सिर्फ विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार तक ही सीमित रखना चाहते थे. पंरतु उग्रवादी नेता सिर्फ विदेशी वस्तुओं का ही नही बल्कि सरकारी स्कूलो, अदालतों और सरकारी नौकरियों का भी बहिष्कार इसमें शामिल करना चाहते थे.

उग्रवादी दल के नेता बाल गंगाधर तिलक, विपिनचंद्र पाल, लाला लाजपत राय और अरविन्द घोष ने इस आन्दोलन को पूरे देश में फैलाया. इस आन्दोलन के दौरान अश्विनी कुमार दत्त ने “स्वदेश बांधव समिति” स्थापना की थी. इस समिति ने आन्दोलन में जन समर्थन एकत्र करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. इस आन्दोलन का परिणाम 15 अगस्त 1906 को राष्ट्रीय शिक्षा परिषद् की स्थापना के रूप में सामने आया. इस आन्दोलन का प्रभाव सांस्कृतिक और साहित्यिक क्षेत्र पर भी पड़ा. इस आन्दोलन के दौरान प्रफुल्ल चन्द्र राय ने बंगाल केमिकल स्वदेशी स्टोर की स्थापना हुई.

स्वदेशी आन्दोलन के कारण बड़ी संख्या में छात्र राष्ट्रीय आन्दोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने लगे. जिसके परिणाम स्वरूप उन्हें सरकार की दमनकारी नीति का आक्रोश झेलना पड़ा और जिन छात्रों ने ने स्वदेशी आन्दोलन में भाग लिया था. उन्हें दी जाने वाली सरकारी सहायता और छात्रवृत्ति पर रोक लगा दी गयी. ऐसे छात्रों को सरकारी नौकरी के लिए अयोग्य घोषित कर दिया गया. इस आन्दोलन में महिलाओं ने भी सक्रिय रूप से भाग लिया.

क्रांतिकारी राष्ट्रवाद उभरने के भय से 1911 में बंगाल का विभाजन रद्द कर दिया गया. विभाजन रद्द किये जाने के साथ ही सरकार ने भारत की राजधानी कलकत्ता से बदलकर दिल्ली की बना दिया.

स्वदेशी आन्दोलन के असफलता के कारण(Swadeshi Movement Failure Cause)

अंग्रेज साकार ने आंदोलनकारियो के प्रति कठोर करवाई की. यह आन्दोलन एक विशाल रूप नहीं ले सका. क्योंकि 1908 तक अधिकांश नेता गिरफ्तार कर लिए गए थे. आन्दोलन में समाज के सभी वर्ग इसमें शामिल नहीं हुए थे. मुसलमानों और किसानों को यह आन्दोलन प्रभावित नहीं कर पाया था.

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