अंग्रेजो से नफरत करने वाले सवाई माधोसिंह द्वितीय की कहानी

अंग्रेजों से नफरत करने वाले जयपुर के राजा सवाई माधोसिंह की कहानी | Maharaja Sawai Madho Singh Second Story in Hindi

आपने बहुत से हिन्दू राजाओ के बारे में सुना होगा पर एक आज हम एक ऐसे हिन्दू राजा के बारे में बताने जा रहे हे जिनकी हिन्दू धर्म के प्रति आस्था से लन्दन के लोग भी हैरत में थे. इतिहास में अनेक राजाओं को जान बुझकर बदनाम किया गया उनमे इनका नाम भी था. ये राजा कट्टर सनातनी थे. ये माँ गंगा के अनन्य भक्त थे इन्होने जयपुर में स्थित गोविन्द देवजी के मंदिर के पीछे गोपालजी का मंदिर और गंगाजी का मंदिर बनवाया था.

हम बात कर रहे है महाराजा सवाई माधोसिंह द्वितीय की. इनका जन्म ईसरदा के ठा. रघुनाथसिंह के यहाँ भादवा वदी 1861 ई० में हुआ था, माधोसिंह जी ठा. रघुनाथसिंह जी के द्वितीय पुत्र थे. माधोसिंह जी को कोई पुत्र नही हुआ था. इसलिए इन्होंने 1921 ई० में ईसरदा के ठा. सवाईसिंह के पुत्र मोर मुकुटसिंह को गोद ले लिया और गौद लेने के बाद उनका नाम मानसिंह जी द्वितीय रखा. गंगाभक्त राजा माधोसिंह के बारे में कहा जाता है कि वे हर वर्ष ट्रेन से हरिद्वार जाते और वहां महीने भर रहते.

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राधा-कृष्ण के थे माधोसिंह द्वितीय

माधोसिंह जी राधा-कृष्ण के अनन्य भक्त थे की वे दिन की शुरुआत पूजा करने के बाद ही करते थे. वे कही भी जाते थे तो इन्हें साथ ही रखते थे. माधोसिंह जी हमेशा अपने साथ राधे-कृष्ण की मूर्ति और गंगाजल लेकर जाते थे. यहाँ स्थित गोविंद देव जी के मंदिर में प्रतिष्ठित राधा-कृष्ण लंदन की गलियों में घूम चुके हैं. पालकी में सवार होकर लंदन पहुंचे इन राधा-कृष्ण की इस यात्रा की कहानी भी बहुत रोचक है. जब एक बार की बात है जब सन 1902 के दौरान ब्रिटेन में एडवर्ड सप्तम के राजतिलक समारोह में उपस्थित होने का निमंत्रण माधोसिंह जी महाराज को भी था. उन्हें लंदन करीब 1 महीने से ज्यादा समय के लिए जाना था तब वे अपने साथ काफी मात्रा में गंगाजल लेकर जाना चाहते थे.

विश्व का सबसे बड़ा कलश

जब माँ गंगा के अनन्य भक्त माधोसिंह ने अपनी इग्लैंड यात्रा के दौरान गंगाजल को लंदन ले जाने के लिए विशेष रूप से बनाए गए चांदी के बड़े-बड़े कलशों का उपयोग किया था. जो कलश उस समय महाराज लंदन लेकर गये थे उन्हें आज भी सिटी पैलेस में देखा जा सकता है. जिन बड़े-बड़े कलश को लेकर महाराज जी गये थे इसी गंगाजल से सफर में महाराजा का भोजन बनता और वे इसी जल का वह सेवन करते. यहाँ आपको बता दे की चांदी से बने इन कलश का आकार इतना बड़ा है कि इसे गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में शामिल किया गया है. इन कलशों में गंगाजल भरकर हरिद्वार से इंग्लैंड ले जाया गया.

गंगाजल से धुलवाया था जहाज

ताजपोशी के लिए इंग्लैंड पानी के जहाज ‘ओलिम्पिया’ से गए तो पूरे जहाज को गंगाजल से धुलवाया और एक कक्ष में राधा गोपाल को स्थापित किया. उसके पहले जब उनकी ट्रेन जयपुर से मुंबई के लिए निकली तो उसके पहले ट्रेन तक जुलुस के रूप में राधा गोपालजी को पालकी में बिठाकर ले जाया गया. और उसके बाद जहाज से उतरकर इंग्लैंड की गलियों में आगे-आगे राधे-कृष्ण पालकी में और पीछे महाराज के साथ सेवा दल के लोग और कर्मचारी चल रहे थे, और इसी तरह वे अपने गंतव्य तक पहुचे थे. ये नजारा तब काफी चर्चा में था. जिसे देखकर हैरत से भरे अंग्रेजों की भीड़ इकट्टी हो गई.

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3 जून 1902 का वह ऐतिहासिक दिन था जब किसी देवी-देवता का लंदन की सड़कों पर जुलूस निकला था. और लंदन की मीडिया में माधोसिंह जी को धर्म प्रयाण राजा कहा गया. लन्दन ही नहीं पूरी दुनिया में एक राजा के अपने इष्टदेव के प्रति अटूट श्रद्धा की बातें सुनकर लोग हैरत में थे. इनकी इस यात्रा का कुछ अंग्रेजों ने मखौल भी उड़ाया और इस यात्रा को एक अंधविश्वासी राजा की सनक तक लिखा. मगर राजा माधो सिंह ने अपनी श्रद्धा में भी कोई कमी नहीं आने दी.

हाथ मिलाने के बाद धोते थे हाथ

महाराजा माधोसिंह ने अपनी इंग्लैंड प्रवास के दौरान अंग्रेजों से हाथ मिलाने के बाद महाराजा अपने हाथो को अपने साथ जयपुर से ले जायी गई मिट्टी से मलते और गंगाजल से हाथ धोकर वह स्वयं को पवित्र मानते.

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