कवित्री कृष्णा सोबती का जीवन परिचय | Krishna Sobti Biography in Hindi

कृष्णा सोबती की जीवनी, जन्म, मृत्यु, प्रमुख रचनाएँ और साहित्य | Kavitri Krishna Sobti Biography, Birth, Death, and Literature in Hindi

हिंदी कथा साहित्य में कृष्णा सोबती की विशिष्ट पहचान है. वह कहती है की “कम लिखना और विशिष्ट लिखना” यही कारण है उनके संयमित लेखन और साफ़-सुथरी रचनात्मकता ने अपना एक नया पाठक वर्ग बनाया है. उनके कई उपन्यासों, कहानियों और संस्मरणों ने हिंदी के साहित्यिक संसार में अपनी दीर्घजीवी उपस्थिति सुनिश्चित की है. सोबती को उनके 1966 के उपन्यास मित्रो मरजानी के प्रकाशित होने के बाद एक नई पहचान मिली थी. उन्होंने हिंदी साहित्य को कई ऐसे यादगार चरित्र दिए हैं, जिन्हें अमर कहा जा सकता है; जैसे- मित्रो, शाहनी, हशमत आदि. उनकी लिखी गई रचनाएँ आज तक हिंदी विषय की पुस्तकों में आती है और विघालय में पढाई जाती है.

भारत-पाकिस्तान पर जिन लेखकों ने हिंदी में कालजयी रचनाएँ लिखीं, उनमें कृष्णा सोबती का नाम पहली कतार में लिखा गया है, क्योंकि उस समय यशपाल के झूठा सच, राही मासूम रज़ा के आधा गाँव और भीष्म साहनी के तमस के साथ-साथ कृष्णा सोबती की जिंदगीनामा यह सभी रचनाएँ उस समय अलग-अलग कविं- कवित्री द्वारा लिखी गई थी और सोबती जी की लिखी गई इस प्रसंग में एक विशिष्ट उपलब्धि है. कृष्णा सोबती के प्रकाशनों का अनुवाद कई भारतीय और विदेशी भाषाओं में किया गया है.

जन्म और परिवार

कृष्णा सोबती का जन्म 18 फ़रवरी सन् 1925 गुजरात में हुआ था और सन् 1942 के भारत पाकिस्तान विभाजन के बाद गुजरात का वह हिस्सा पाकिस्तान में चला गया, जिसके बाद वह भारत आकर बस गई. उनकी शिक्षा दिल्ली और शिमला में शुरू हुई एवं उन्होंने अपने तीन भाई-बहनों के साथ स्कूल में पढ़ाई की और उनके परिवार ने औपनिवेशिक ब्रिटिश सरकार के लिए काम किया था. उन्होंने लाहौर के फतेहचंद कॉलेज में अपनी उच्च शिक्षा शुरू की तब उस समय जब भारत का विभाजन हुआ तो वे भारत लौट आईं. उन्होंने 70 साल की उम्र के बाद शिवनाथ जी के साथ शादी की. बीमारी के कारण उनका 25 जनवरी 2019 को स्वर्गवास हो गया.

जीवन परिचय, साहित्य परिचय और लिखने की शैली

भारत पाकिस्तान विभाजन के बाद उन्होंने राजस्थान के महाराज तेज सिंह के शासन में 2 साल काम किया और उसके बाद वह दिल्ली चली गई और वहां पर रचनाएँ लिखना शुरू कर दिया. साल 1980 में इन्हें “जिंदगीनामा” के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था और 1996 में इन्हें साहित्य अकादमी का सर्वोच्च पद देकर सम्मानित किया गया था, ऐसी कई सारी रचनाएँ लिखी जिनसे उनका नाम भारत के प्रमुख रचनाएँ लिखने वाली कवित्री में आता है.

सोबती की रचनाएँ महिला पहचान और कामुकता के मुद्दों से निकटता से निपटती हैं, उन्होंने ‘महिला लेखक’ के रूप में लेबल किए जाने का विरोध किया है और एक लेखक के रूप में मर्दाना और स्त्री दोनों दृष्टिकोणों पर कब्जा करने के महत्व की बात की है. उनकी लेखन शैली और मुहावरों के साथ-साथ उनके विषयों की पसंद ने भी कुछ आलोचनाओं को आकर्षित किया है. यह कहा गया है कि वह अपने लेखन में बहुत अधिक अपवित्रता का प्रयोग करती वो भी अक्सर अनावश्यक रूप में और उनकी लेखन शैली “साहित्यिक” है.

उनके द्वारा लिखी हुई प्रमुख रचनाएँ, प्रमुख सम्मान, उपन्यास, प्रसिद्ध लघु कथाएँ-

प्रमुख रचनाएँ : जिंदगीनामा, दिलोदानिश, ऐ लड़की, समय सरगम (उपन्यास); डार से बिछुड़ी, मित्रो मरजानी, बादलों के घेरे, सूरजमुखी अँधेरे के, (कहानी संग्रह); हम-हशमत, शब्दों के आलोक में (शब्दचित्र, संस्मरण).
प्रमुख सम्मानः साहित्य अकादमी सम्मान, हिंदी अकादमी का शलाका सम्मान, साहित्य अकादमी की महत्तर सदस्यता सहित अनेक राष्ट्रीय पुरस्कार.
उपन्यास – दार से बिचुरी, सूरजमुखी अंधेरे के, यारों के यार, जिंदगीनामा
प्रसिद्ध लघु कथाएँ – नफीसा, सिक्का बादल गया, बदलोम के घर

पुरस्कार

  • 1981 में शिरोमणि पुरस्कार दिया गया.
  • 1982 में हिंदी अकादमी पुरस्कार दिया गया.
  • दी अकादमी दिल्ली का शलाका पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
  • 1999 में लाइफटाइम लिटरेरी अचीवमेंट के लिए चूड़ामणि पुरस्कार दिया गया.
  • 2005 में भारतीय भाषा कथा अनुवाद श्रेणी में क्रॉसवर्ड पुरस्कार जीता.
  • 2017 में इन्हे ज्ञानपीठ पुरुस्कार देकर समानित किया गया था.

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