कारगिल युद्ध पर निबंध | Essay on Kargil War in Hindi

कारगिल युद्ध पर निबंध (इतिहास, कारण, उद्देश्य, शौर्य की कहानी) | Essay on kargil war (History, Reasons, Heroes & Story) in Hindi

भारत की स्वतंत्रता के साथ ही पाकिस्तान का जन्म हुआ तभी से पाकिस्तान भारत के विरुद्ध अनेक प्रकार के षड्यंत्र रचता रहा हैं. वह 1965 और 1971 में भारत पर आक्रमण कर चूका हैं. प्रत्येक युद्ध में उसकी पराजय हुई हैं. भारत ने क्षमादान के साथ युद्ध में जीती हुई भारत भूमि लौटाई किन्तु पाकिस्तान निरंतर अपनी शत्रुतापूर्ण मनोवृति का परिचय दे रहा हैं. अपनी राजनीतिक, प्रशासकीय एवं आर्थिक कमजोरी को छिपाकर पाकिस्तानी जनता का ध्यान भटकाना, उसे भारत के विरुद्ध भड़काना तथा कश्मीर विजय का सपना लेकर भारत को प्रत्येक दृष्टि से कमजोर बनाना ही पाकिस्तान के राजनेताओं की विकृत मानसिकता का परिचायक है. मई से जुलाई 1999 तक भयानक कारगिल युद्ध इसी मानसिकता का परिणाम था. इस युद्ध में भी पाक को भारत के समक्ष घुटने टेकने पड़े और सारे संसार में उसकी छवि भी पूरी तरह से धूमिल हो गई.

कारगिल की भौगोलिक स्थिति (Geographical Location of Kargil)

जम्मू कश्मीर राज्य की सीमा पर लगभग 814 किलोमीटर लंबी वास्तविक नियंत्रण रेखा का निर्धारण किया गया है. यह नियंत्रण रेखा जम्मू कश्मीर के सीमावर्ती क्षेत्रों राजौरी, पुंछ, उड़ी, उप वाला, कारगिल और लेह होते हुए सियाचिन तक जाती है. इस नियंत्रण रेखा से लगभग 6 किलोमीटर की दूरी पर राष्ट्रीय राजमार्ग जो श्रीनगर, कारगिल, द्रास और लेह को जोड़ता था. इस राजमार्ग के बंद होते ही लेह का संबंध देश से टूट जाता है. इन सीमावर्ती क्षेत्रों में 6000 फिट से 17000 फिट तक की ऊंचाई वाले पहाड़ है. जिन पर पूरे वर्ष 20 से 30 फुट तक मोटी बर्फ जमा रहती है. इस क्षेत्र की 15000 फिट तक गहरी खाईया, दूर दूर तक फैली कटीली झाड़ियां तथा सकरे और दुर्गम मार्गों को देखकर दिल दहलने लगता है. सितंबर अक्टूबर में तापमान शून्य से भी नीचे पहुंच जाता है. दिसंबर जनवरी की सर्दी की कल्पना से ही मन घबराने लगता है.

कारगिल का सामरिक दृष्टी से महत्त्व (Kargil’s Importance from strategic perspective)

कारगिल क्षेत्र सामरिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है. क्षेत्र पर पाकिस्तान के साथ साथ चीन भी निगाहें लगाए बैठा रहता है. रक्षा सूत्रों के अनुसार पाकिस्तान कारगिल के माध्यम से सियाचिन पर अपना कब्जा करना चाहता है और इसी उद्देश्य से पाक सेना लद्दाख स्थित कारगिल क्षेत्र में घुसपैठ की योजना पर कार्य करती रहती है.

कारगिल आक्रमण का उद्देश्य (Kargil Attack Objective)

कारगिल में घुसपैठ करके शेष भारत का सियाचिन से संपर्क मार्ग अलग करना तथा सियाचिन पर आधिपत्य स्थापित करना, कारगिल में पाकिस्तानी हरकतों का प्रमुख लक्ष्य रहा है. इसके साथ पाकिस्तान का अप्रत्यक्ष उद्देश्य यह भी है कि वह ऐसा करके कश्मीर के मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जिंदा रखना चाहता है.

घुसपैठ द्वारा पहले से ही भारतीय क्षेत्रों पर कब्ज़ा (Before Kargil Attack)

पाकिस्तान ने अपनी सोची-समझी रणनीति के अंतर्गत सितंबर 1998 में सीधे सियाचिन पर आक्रमण कर दिया था. जिसमें वह पूरी तरह से असफल रहा था. भारत विरोध और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी निंदा के बाद भी पाक सेना ने घुसपैठियों के रूप में नियंत्रण रेखा के समीपवर्ती स्थानों पर कब्जा जमाने का अभियान जारी रखा. दिनाँक 1 मार्च 1999 को अचानक पकिस्तान ने अपनी गतिविधियों को तेज करते हुए, इन क्षेत्रों में स्थित भारतीय चौकियों और बंकरो पर अपना अधिकार कर लिया. कारगिल स्थित द्रास, मश्कोह घाटी, बटालिक आदि अनेक महत्वपूर्ण क्षेत्रों पर अपना ठिकाना बनाकर पूरी सामरिक तैयारी के साथ आक्रमण के उपयुक्त अवसर की प्रतीक्षा करने लगे. भारतीय नागरिक ठिकानो पर लगातार इन घुसपैठियों द्वारा निरंतर गोलीबारी की जाती रही हैं. भारत के अनेक बार पाक सरकार को चेतावनी दी किन्तु पाक सेना के इशारों पर घुसपैठियों ने आक्रमण में और अधिक तीव्रता ला दी हैं.

कारगिल आक्रमण (Kargil Attack)

जम्मू कश्मीर के लद्दाख सेक्टर स्थित कारगिल द्रास क्षेत्र में पाकिस्तानी सेना ने 10 मई 1999 को अचानक ही भीषण बमबारी शुरू कर दी. इसके फलस्वरूप भारतीय आयुध भंडार में आग लग गई और आठ भारतीय सैनिक शहीद हो गए. भारत द्वारा विरोध करने के बाद भी पाक का आक्रमण और अधिक तेज हो गया. विवश होकर 26 मई 1999 को भारत को भी कारगिल में खुला युद्ध शुरू करने की घोषणा करनी पड़ी. पूरे भारत में रेड अलर्ट कर दिया गया. भारतीय कारगिल की ओर से करने लगी. भारतीय तोपों तथा टैंकों का मुहँ कारगिल की ओर मोड़ दिया गया और कारगिल में कैसा युद्ध शुरू हो गया, जो इतनी ऊंचाइयों पर इतनी भीषण और दुर्गम परिस्थितियों में लड़ा जाने वाला विश्व का प्रथम तथा भीषण युद्ध था.

भीषण युद्ध (Kargil War)

कारगिल में घुसपैठियों और पाक सैनिकों के विरुद्ध भारतीय सेना ने ऑपरेशन विजय अभियान शुरू करते हुए दुश्मन को हर मोर्चे पर मुंह तोड़ करारा जवाब दिया और भारतीय सीमा में मौजूद लगभग 700 सैनिकों और घुसपैठियों को घेर लिया था. भारतीय सेना की इस प्रथम कार्यवाही में पाक के 160 सैनिक और आतंकवादी घुसपैठिए मारे गए. उसके बाद भारतीय सेना ने कारगिल की दुर्गम घाटियों, ऊंचे पहाड़ों, बर्फीले मार्गो और शत्रु की गोलीबारी की चिंता ना करते हुए आंधी की तरह आगे बढ़ना शुरू कर दिया था. भारतीय सुर वीरों ने शीघ्र ही अनेक महत्वपूर्ण ठिकानों पर पुनः अपना कब्जा कर लिया तथा सैकड़ों घुसपैठियों को मौत के घाट उतार दिया. शत्रु को तेजी से पीछा करते हुए प्वाइंट 4812, टाइगर हील तथा जुगार हिल पर फिर से तिरंगा फहरा दिया और 12 जुलाई तक संपूर्ण द्रास और बटालिक सेक्टर भारतीय सेना के कब्जे में आ गए. भारतीय थल तथा वायु सेना के सैकड़ों जवानों ने इन क्षेत्रों पर कब्जा करने हेतु अपने प्राण न्योछावर कर दिए. थल सेना के साथ सहयोग करते हुए वायु सेना ने भी मातृभूमि की रक्षा के लिए इस पुण्य कार्य में अपने अदम में शौर्य का परिचय दिया.

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युद्ध का अंत और भारत की विजय (Kargil War Result and India Win)

युद्ध के दौरान संपूर्ण विश्व में पाक की घोर निंदा हुई तथा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान अकेला पड़ गया. भारत ने पाक को 17 जुलाई तक अपने घुसपैठिए वापस बुलाने की चुनौती देकर अपनी सामरिक कार्यवाही जारी रखी. इसी बीच युद्ध में अपनी पराजय देखकर पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने अमेरिका पहुंचकर अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन के साथ एक संयुक्त बयान जारी किया और घुसपैठियों की वापसी व नियंत्रण रेखा का सम्मान करने की घोषणा की. इसके बाद भी मश्कोह, द्रास और कारगिल में घुसपैठियों की स्थिति बनी रही, जिन्हें भारतीय सेना ने जुलाई के अंतिम सप्ताह तक मौत की नींद सुला दिया और नियंत्रण रेखा के पार भागने पर विवश कर दिया.
मातृभूमि की रक्षा के प्रति प्रतिबद्धता, अदम्य साहस, रण कौशल और जान हथेली पर रख करने वाले बहादुरों के दम पर लगभग 2 माह के छद्म युद्ध में ही भारत ने पाक को अपमानजनक पराजय का मुंह देखने के लिए विवश करते हुए अपनी एक 1-1 इंच भूमि पुनः प्राप्त कर ली.

भारतीय सेना का अदम्य साहस एवं शौर्य (Story of Bravery of Indian Army in Kargil War)

कारगिल युद्ध में भारतीय सैनिकों की बहादुरी, रोमांचकारी, विसमय्कारी, हरियद्रावक तथा बेमिसाल है. वर्ष भर बर्फ में ढकी ऊंची पहाड़ियों पर इतने लंबे समय तक लड़े गए विश्व के इस प्रथम युद्ध में वीरों ने बर्फ के गोले खाकर, भूखे प्यासे रहकर, घंटों रेंगते हुए आगे बढ़कर, गोलियों से सीना छलनी होने पर भी दुश्मन से निरंतर लोहा लिया तथा कहीं-कहीं घुसपैठियों को मौत के घाट उतारकर ही प्राण त्यागे. इसमें से अनेक सैनिक अपने माता पिता की एकमात्र संतान थे, कुछ अपनी बहनों का अकेला भाई थे, कुछ की शादी में केवल 1 सप्ताह से इस था, कुछ की शादी कुछ दिन पूर्व हुई थी. उसकी दुल्हन के हाथों की मेहंदी भी अभी छुट्टी नहीं थी. ऐसा भी कोई था जिसका प्रथम नवजात अपने पिता को देखने के लिए ग्रह द्वार पर टकटकी लगाए था किंतु चारों ओर प्रतीक्षा होती रही, स्वप्न धूल प्रसारित हो गए, आशाएं निराशा में बदल गई, जिन की प्रतीक्षा थी लौटने कि वह या तो लौटे ही नहीं अथवा लौटे तो शहीद होकर. कमांडो सुरेंद्र सिंह शेखावत, मेजर मरियप्पन, मेजर कमलेश प्रसाद, मेजर विवेक गुप्ता, मेजर राजेश अधिकारी, नायक हरेंद्र सिंह, मेजर मनोज तलवार जैसे कितने ही अभूतपूर्व साहस का परिचय देने वाले तथा अपने वतन के लिए शहीद हो जाने वाले इन सैनिकों की शौर्य गाथा पूरे विश्व के सैनिकों के लिए सदैव प्रेरणा स्त्रोत बनी रहेगी.

कर्तव्य क राष्ट्रव्यापी जोश (Kargil War Conclusion)

कारगिल युद्ध में अपने प्राणों की आहुति देने और घायल होने वाले जवानों के प्रति प्रेम, सम्मान, सहानुभूति और कर्तव्य बोध का जो देश व्यापक जोश दिखाई दिया वह अभिभूत करने वाला था. बच्चे से लेकर वृद्ध तक, भिखारी से लेकर उद्योगपति तक कारगिल के सैनिकों के लिए कुछ ना कुछ करने को तत्पर थे. सरकारी कर्मचारियों एक एक दिन का वेतन राष्ट्रीय कोष में दिया, सांसदों तथा मंत्रियों ने एक-एक माह का वेतन राष्ट्रीय कोष में जमा कराया था. राष्ट्रीय कोष में स्वर्ण तथा धन का ढेर लगने लगा था. संपूर्ण भारत अपने सैनिकों के प्रति नतमस्तक हो गया था. राज्य सरकारों और केंद्रीय सरकार ने शहीदों के परिवार की भरपूर मदद की थी. कारगिल शहीदों की विधवाओं को आर्थिक रूप से समृद्ध बनाने के लिए समाज और सरकार की ओर से अथक प्रयास किए गए थे.

कारगिल विजय भारतीय सेना की शौर्य गाथा है. हमारे सैनिकों की यह सफलता इसलिए भी प्रशंसनीय और अभिनंदनीय है क्योंकि भारतीय फौज के हथियार पाक सेना के मुकाबले उन्नीस थे. साथ ही वे युद्ध की तैयारी में थे, मानसिक रूप से तैयार है जबकि हम पर युद्ध सौंपा गया था. हम लड़ना ही नहीं चाहते थे, मैत्री भाव चाहते हैं. पूरे विश्व में भारत का समर्थन किया. कारगिल युद्ध से ही भारतीय फौज की शक्ति और सामर्थ्य को पूरे विश्व में स्वीकार किया.

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