कुम्भ संक्रांति का महत्व, इतिहास, तिथि, शुभ मुहूर्त और पूजा विधि | Kumbha Sankranti Mahatva, Dates, History, Shubh Muhurat and Puja Vidhi in Hindi
सूर्य देव के मकर राशी से कुम्भ राशी में प्रवेश की तिथि को कुम्भ संक्रांति के रूप में मनाया जा हैं. वर्षभर में आने वाली 12 संक्रतियों में से यह संक्राति फाल्गुन महीने और 11वे क्रम पर आती हैं. यह पर्व सदैव एक तिथि पर नहीं आता हैं क्योंकि सूर्य के दिशा और स्थिति के अनुसार कुम्भ संक्राति का दिन तय किया जाता हैं. इस वर्ष यह पर्व 13 फरवरी को बुधवार के दिन मनाया जायेगा. आमतौर पर कुम्भ संक्रांति फरवरी या मार्च महीने में आती हैं.
कुम्भ संक्रांति 2019 मुहूर्त और समय (Kumbha Sankranti Muhurat and Timings)
सूर्योदय का समय |
13 फ़रवरी 2019 सुबह 07:04 बजे |
सूर्यास्त का समय |
13 फ़रवरी 2019 शाम 18:17 बजे |
पुण्य काल मुहूर्त |
सुबह 07:04 बजे से सुबह 08:54 बजे तक |
महा पुण्य काल मुहूर्त |
सुबह 08:30 से सुबह 08:54 बजे तक |
संक्राति समय |
13 फ़रवरी 2019 सुबह 08:54 बजे |
कुम्भ संक्रांति का महत्व (Kumbha Sankranti Significance)
इस दिन से दुनिया के सबसे बड़े मेला यानी कुम्भ मेले की शुरुआत हो जाती हैं. जिसे देखने और पवित्र स्नान करने के लिए लाखों श्रद्धालु नदी के किनारे पहुँचते हैं. इस दिन गंगा नदी में स्नान करना बेहद ही पवित्र माना गया हैं इस दिन गंगा में स्नान करने से बुरे काम और पापों से मुक्ति मिल जाती हैं.
पूरे भारतवर्ष में इस दिन कुम्भ संक्राति का पर्व मनाया जाता हैं लेकिन इसे सबसे ज्यादा इसे पूर्वी भारत के इलाकों में मनाया जाता हैं. पश्चिम बंगाल में लोग इसे शुभ फाल्गुन मास की शुरुआत के रूप में मानते हैं. मलयालम कैलेंडर के अनुसार, यह त्यौहार मासी मासम के रूप में जाना जाता है. इस दिन सभी भक्त पवित्र स्नान करने और दर्शन करने के लिए इलाहाबाद, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक जैसे शहरों की और अपना रुख करते हैं. इस दिन लोग अपने अच्छे भविष्य की कामना के लिए ईश्वर की प्रार्थना करते हैं. इस दिन धार्मिक स्थलों पर अन्य दिनों की तुलना में ज्यादा भक्त जुटते हैं.

पूजन विधि (Puja Vidhi)
- कुम्भ संक्रांति के दिन भक्तों को अन्य संक्राति की तरह अन्न, कपडे और अन्य जरुरी सामान ब्राह्मण पंडितों को दान करने का महत्व हैं.
- इस दिन गंगा नदी के अन्दर स्नान करने का विशेष महत्व हैं. कहते हैं इस दिन गंगा में स्नान करने से जन्मो जन्मों के पाप धुल जाते हैं. और मोक्ष्य की प्राप्ति होती हैं.
- इस दिन साफ़ मन और पूर्ण श्रद्धा से गंगा जी की आरती और पूजा पाठ करना चाहिए.
- जो लोग गंगा में स्नान करने में असमर्थ होते हैं वह इस दिन शिप्रा, यमुना और गोदावरी नदी की किनारे मोक्ष प्राप्ति के लिए रुख करते हैं.
- कुम्भ संक्राति के इस दिन गाय दान करने की भी परंपरा हैं. ऐसा माना जाता हैं इससे सुख और वैभव की प्राप्ति होती हैं.
इतिहास (History)
कुम्भ संक्राति को मनाने की परंपरा हिन्दू रीति-रिवाजों में शताब्दीयों पुरानी हैं. भारत के प्रतापी राजा हर्षवर्धन के समय (629 CE) के इतिहास में पहली कुम्भ मेले और कुम्भ संक्राति का उल्लेख मिलता हैं. इतिहासकारों के अनुसार हर्षवर्धन के शासनकाल से ही कुम्भ मेलों का आयोजन होना शुरू हुआ था. कुम्भ मेला प्रत्येक तीन वर्षो में हरिद्वार में में गंगा, इलाहाबाद में यमुना, उज्जयिनी(उज्जैन) में शिप्रा, नासिक में गोदावरी जैसी नदियों के किनारे आयोजित किया जाता हैं. हिन्दू पुराणों जैसे भागवत पुराण में कुम्भ संक्राति का जिक्र हुआ हैं.

कुम्भ संक्रांति की तारीख 2020 से 2030 तक (Kumbha Sankranti Dates From 2020 to 2030)
वर्ष |
तारीख |
वार |
2020 |
13 फरवरी |
बुधवार |
2021 |
12 फरवरी |
शुक्रवार |
2022 |
13 फरवरी |
रविवार |
2023 |
13 फरवरी |
सोमवार |
2024 |
13 फरवरी |
मंगलवार |
2025 |
12 फरवरी |
बुधवार |
2026 |
13 फरवरी |
शुक्रवार |
2027 |
13 फरवरी |
शनिवार |
2028 |
13 फरवरी |
रविवार |
2029 |
12 फरवरी |
सोमवार |
2030 |
13 फरवरी |
बुधवार |