चाणक्य नीति : यदि सफल होना चाहते है तो याद कर लें इन 6 प्रश्नों के उत्तर

यदि आप सफलता का प्रतिशत बढ़ाना चाहते हैं तो यहां एक चाणक्य नीति बताई जा रही है. इस नीति का ध्यान रखेंगे तो आपको अधिकतर कार्यों में सफलता मिल सकती है. हम जब ज्यादा कामों में सफल होंगे तो धन संबंधी लाभ भी मिलेगा.

क: काल: कानि मित्राणि को देश: कौ व्ययागमौ। कस्याऽडं का च मे शक्तिरिति चिन्त्यं मुहुर्मुंहु:।।

क: काल: कानि मित्राणि को देश: कौ व्ययागमौ। कस्याऽडं का च मे शक्तिरिति चिन्त्यं मुहुर्मुंहु:।।

पहली बात: समझदार व्यक्ति जानता है कि वर्तमान समय कैसा चल रहा है. अभी सुख के दिन हैं या दुख के. इसी के आधार पर वह कार्य करता हैं. यदि सुख के दिन हैं तो अच्छे कार्य करते रहना चाहिए और यदि दुख के दिन हैं तो अच्छे कामों के साथ धैर्य बनाए रखना चाहिए.

क: काल: कानि मित्राणि को देश: कौ व्ययागमौ। कस्याऽडं का च मे शक्तिरिति चिन्त्यं मुहुर्मुंहु:।।

दूसरी बात है “मनस्तापं” अर्थात हमें कभी भी मन संताप यानि हमारे दुःख की बात किसी ओर को नही बताना चाहिए.

क: काल: कानि मित्राणि को देश: कौ व्ययागमौ। कस्याऽडं का च मे शक्तिरिति चिन्त्यं मुहुर्मुंहु:।।

तीसरी बात: यह देश कैसा है यानी जहां हम काम करते हैं, वह स्थान, शहर और वहां के हालात कैसे हैं. कार्यस्थल पर काम करने वाले लोग कैसे हैं. इन बातों का ध्यान रखते हुए काम करेंगे तो असफल होने की संभावनाएं बहुत कम हो जाएंगी.

क: काल: कानि मित्राणि को देश: कौ व्ययागमौ। कस्याऽडं का च मे शक्तिरिति चिन्त्यं मुहुर्मुंहु:।।

चौथी बात: समझदार इंसान वही है तो अपनी आय और व्यय की सही जानकारी रखता है. व्यक्ति को अपनी आय देखकर ही व्यय करना चाहिए. जो लोग आय से अधिक खर्च करते हैं, वे परेशानियों में अवश्य फंसते हैं.

क: काल: कानि मित्राणि को देश: कौ व्ययागमौ। कस्याऽडं का च मे शक्तिरिति चिन्त्यं मुहुर्मुंहु:।।

पांचवीं बात: हमें इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि हमारा प्रबंधक, कंपनी, संस्थान या बॉस हमसे क्या चाहता है. हम ठीक वैसे ही काम करें, जिससे संस्थान को लाभ मिलता है. यदि संस्थान को लाभ होगा तो कर्मचारी को भी लाभ मिलने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं.

क: काल: कानि मित्राणि को देश: कौ व्ययागमौ। कस्याऽडं का च मे शक्तिरिति चिन्त्यं मुहुर्मुंहु:।।

अंतिम बात: अंतिम बात सबसे जरूरी है, हमें यह मालूम होना चाहिए कि हम क्या-क्या कर सकते हैं. वही काम हाथ में लेना चाहिए, जिसे पूरा करने का सामर्थ्य हमारे पास है. यदि शक्ति से अधिक काम हम हाथ में ले लेंगे तो असफल होना तय है. ऐसी परिस्थिति में कार्य स्थल और समाज में हमारी छबि पर बुरा असर होगा.