भगवती देवी शर्मा का जीवन परिचय | Bhagwati Devi Sharma Biography in Hindi

भगवती देवी शर्मा की जीवनी, संघर्ष, अखंड ज्योति और शांतिकुंज की स्थापना की कहानी | Bhagwati Devi Sharma Biography, Life Struggle, Akhand Jyoti and Shantikunj establishment in Hindi

भगवती देवी शर्मा एक भारतीय समाज सुधारक थी. वे अखिल भारतीय गायत्री परिवार की सह-संस्थापक थी. इन्होने समाज के सामाजिक उत्थान के लिए बहुत से कार्य किये. इन्होने सफलतापूर्वक कई अश्वमेघ यज्ञ का आयोजन किया.

भगवती देवी शर्मा का प्रारंभिक जीवन (Bhagwati Devi Sharma Initial Life)

भगवती देवी शर्मा का जन्म 20 अक्टूबर 1926 उत्तरप्रदेश के आगरा जिले में एक संपन्न परिवार में हुआ था. इनके पिताजी का नाम जसवंतराव शर्मा व माताजी का नाम रामप्यारी शर्मा था. बचपन से ही भगवती देवी धार्मिक प्रवृत्ति की थी. जब वे चार साल की थी तभी उनकी माता जी का निधन हो गया था. वर्ष 1945 में उनका विवाह पंडित श्री राम आचार्य शर्मा से हुआ था. जो आगरा के अवालाखेडा में रहते थे. पंडित जी एक सक्रिय स्वतंत्रता सेनानी थे.

उन दिनों आचार्य जी द्वारा 24 महापुराणों की श्रृंखला का आयोजन किया जा रहा था. पंडित जी उस समय जौ रोटी और छाछ पर निर्वाह कर रहे थे. माता जी ने जौ की रोटी व छाछ तैयार करने से अपने पारिवारिक जीवन की शुरूआत की थी. कुछ ही समय आँवलखेड़ा गाँव में बीते ही थे कि पंडित जी और भगवती जी मथुरा आ गए. यहाँ पंडित जी ने अखंड ज्योति नाम की पत्रिका का प्रकाशन किया था. पाठकों की वैचारिक, पारिवारिक और आध्यात्मिक समस्याओं का समाधान अपनी पत्रिका के माध्यम से करते थे. भगवती देवी घर में आने वाले अतिथि का स्वागत करके घर में जो था कुछ, उसी से उनकी व्यवस्था जुटाती थी.

मात्र 200 रुपये की आय में दो बच्चों, एक माँ इस तरह कुल पांच व्यक्तियों के साथ हर महीने घर आने वाले मेहमानों का स्वागत करना, एक सुघर गृहिणी की भूमिका निभाना केवल भगवती देवी के वश में था. जो भी लोग घर पर आते थे उन्हें अपने घर जैसा अनुभव होता था. आधी रात में आने अतिथि को भी माता जी बिना भोजन किये सोने नहीं देते थे. माता जी का सानिध्य पाकर व्यक्ति भवसागर से पार हो जाता था.

शुरूआती दिनों में अखंड ज्योति पत्रिका घर पर बने कागज से हाथ प्रेस में छपती थी. भगवती देवी उसके लिए हाथ से कूटकर कागज तैयार करती थी. “फिर उसे सुखाकर पैरो से चलने वाली हैण्ड प्रेस द्वारा स्वयं खुद छापती थी. यह कार्य भगवती देवी की दिनचर्या का भिन्न अंग था. इसी श्रमपूर्ण जीवन के कारण भगवती जी को माता जी के नाम से पुकारा जाने लगा.

माता जी कहती थी “हमारा अपना कुछ नहीं हैं, सब कुछ हमारे आराध्य का हैं. उन दिनों पंडितजी के मस्तिष्क के गायत्री तपोभूमि मथुरा की स्थापना का विषय चल रहा था. परन्तु उस समय पैसों का आभाव था. ऐसे समय में माता जी ने अपने पिता द्वारा दिए गए सारे ज़ेवर बेचकर प्राप्त हुए पैसों को निर्माण कार्य के लिए दे दिए.

भगवती देवी जी का संघर्ष (Bhagwati Devi Sharma Life Stuggle)

वर्ष 1959 में पंडित आचार्य जी दो वर्ष की तप साधना के लिए प्रवास पर हिमालय गए थे. भगवती देवी के लिए यह अकेलापन कठिनाइयों से भरा था, परन्तु उन्होंने हिम्मत नहीं हारी. भगवती देवी ने अपने वर्तमान दायित्वों का निर्वहन करते हुए उन्होंने अखंड ज्योति पत्रिका का लेखन, सम्पादन एवं पाठको का मार्गदर्शन आदि वे बड़ी कुशलता के साथ करने लगी. माता जी के संपादन के कारण दो वर्ष में ही अखंड ज्योति के पाठको की संख्या में कई गुना बढ़ गयी. वर्ष 1971 में शांतिकुंज हरिद्वार की स्थापना हो चुकी थी. भगवती देवी ने एक कुशल संगठक के रूप में इसका नेतृत्व कर रही थी. जून 1990 में पंडित जी की मृत्यु के बाद की घडी माता जी के लिए बहुत कठिन थी. माता जी ने 15 लाख लोगो के विराट जनसमूह को आश्वस्त करते हुए कहा कि –“यह देवी शक्ति द्वारा संचालित मिशन आगे बढ़ता जायेगा” . माता जी का कहना था कि भारतीय संस्कृति ही विश्व संस्कृति बनेगी.

जहाँ पूरा विश्व सांप्रदायिकता और जातिवाद से जूझ रहा था. तब भी माताजी ने अश्वमेघ यज्ञों के माध्यम से सभी मतों, धर्मों, जातियों के लोगों को एक मंच पर लाकर खड़ा किया और छुआछूत के भेदभाव से ऊपर उठकर एक पंक्ति में बैठकर भोजन करने के लिए सहमत किया. वर्ष 1993 में तीन बार विदेश जाकर भारतीय संस्कृति का शंखनाद किया.

19 सितम्बर 1994 को शांतिकुंज हरिद्वार में माता जी निधन हो गया. माता जी से जुड़े लाखों लोग आज भी राष्ट्र निर्माण में लगे हैं.

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