मादाम भीकाजी कामा का जीवन परिचय | Bhikaji Kama Biography in Hindi

भीकाजी कामा का जीवन परिचय | Bhikaji Kama History Biography, Birth, Education, Earlier Life, Death, Role in Independence in Hindi

“आगे बढ़ो, हम भारत के लिए हैं और भारत भारतीयों के लिए है “.

– Madam Bhikaji Kama

दोस्तों आज हम क्रांतिकारी महिला मादाम भीकाजी कामा, जिन्हे ‘देश की बेटी’ कहा जाता है, उनका जीवन परिचय साझा करेंगे. मादाम कामा वह महिला है, जिन्होंने पहली बार विदेश में भारत का झंडा फहराया. जर्मनी के स्टुटगार्ट में हुई दूसरी ‘इंटरनेशनल सोशलिस्ट कांग्रेस’ में उन्होंने स्वातंत्र्यपूर्व झंडा फहराया था. तो आइये इस महान महिला क्रांतिकारी का जीवन परिचय विस्तार से जानते है.

प्रारम्भिक जीवन | Madam Bhikaji Kama Early Life

नामभीकाजी कामा
जन्मतिथि24 सितंबर, 1861
जन्मस्थानमुंबई
पितासोराब फरंजि पटेल (प्रसिद्ध व्यापारी)
माताजैजीबाई सोराब
पतिरुस्तम के. आर. कामा
शिक्षाअलेक्झांडा पारसी गर्ल्स स्कूल
Madam Kama Early Life

मादाम भीकाजी कामा का जन्म 24 सितम्बर 1861 को बम्बई में एक पारसी परिवार में हुआ था. उनकी माता जी काफ़ी धार्मिक महिला थी. उनका जन्म संपन्न परिवार में हुआ था, इसलिए उन्हें बचपन में अच्छा वातावरण प्राप्त हुआ. वह बचपन से पढ़ने-लिखने में तेज़ थी. उन्होंने काफी कम समय में अंग्रेजी में अच्छी योग्यता प्राप्त की. उन्होंने अलेक्जेंडर नेटिव गर्ल्स इंग्लिश इंस्टीट्यूट से पढ़ाई की थी. वह शुरू से ही देश केलिए कुछ करना चाहती थी. उनके मन में समाज और अपने देश के प्रति खुप प्रेम था.

वर्ष 1885 में उनका विवाह सामाजिक कार्यकर्ता एवं प्रसिद्ध ब्रिटिश वकील श्री रुस्तम के.आर.कामा के साथ हुआ था. पति-पत्नी दोनों समाज सेवा केलिए समर्पित थे. लेकिन, दोनों के विचारों में बहुत ज्यादा अंतर था. परिणामतः उनके निजी जीवन में थोड़े ही समय में कड़वाहट आने लगी थी.

इसी दौरान मुंबई में प्लेग महामारी ने मुंबई वासियों को अपने जपेट में ले लिया था. भीकाजी निस्वार्थ भाव से प्लेग से ग्रस्त मरीजों की सेवा में व्यस्त थी. लेकिन, वह भी प्लेग के जपेट में आ गयी और देश में किये गए इलाज से ठीक ना होने पर उन्हें यूरोप भेजा गया.

योगदान | Madam Bhikaji Kama Contribution

संपन्न परिवार से सम्बन्ध रखने वाली भीकाजी कामा ने अपने देश के हित के प्रति सब कुछ त्याग दिया. पेरिस में उनके द्वारा प्रकाशित “वन्देमातरम्” पत्र प्रवासी भारतीयों में काफी लोकप्रिय हुआ. कामा अपने क्रांतिकारी विचार अपने प्रकाशन ‘वंदेमातरम्’ में प्रकट करती थी. संपूर्ण पृथ्वी से साम्राज्यवाद के प्रभुत्व को समाप्त करना उनकी लड़ाई का मुख्य हेतु था. 1907 में जर्मनी के स्टटगार्ट में हुयी अन्तर्राष्ट्रीय सोशलिस्ट कांग्रेस में मैडम भीकाजी कामा ने कहा कि – ‘‘भारत में ब्रिटिश शासन जारी रहना मानवता के नाम पर कलंक है. एक महान देश भारत के हितों को इससे भारी क्षति पहुँच रही है.”

उन्होंने भारतवासियों को आव्हान किया कि , ‘‘आगे बढ़ो, हम हिन्दुस्तानी हैं और हिन्दुस्तान हिन्दुस्तानियों का है.” इतना ही नहीं बल्कि उन्होंने कांफ्रेंस में ‘वन्देमातरम्’ अंकित भारत का प्रथम तिरंगा राष्ट्रध्वज भी फहराया था. भीकाजी द्वारा लहराए गए झंडे में देश के विभिन्न धर्मों की भावनाओं और संस्कृति को समेटने की कोशिश की गई थी. उसमें इस्लाम, हिंदुत्व और बौद्ध मत को प्रदर्शित करने के लिए हरा, पीला और लाल रंग इस्तेमाल किया गया था. उसमें बीच में देवनागरी लिपि में वंदे मातरम लिखा हुआ था. भीकाजी कामा लन्दन में दादा भाई नौरोजी की प्राइवेट सेक्रेटरी भी रहीं थी.

निधन | Madam Bhikaji Kama Death

मादाम भीकाजी कामा की मृत्यु 13 अगस्त 1936 को मुंबई में हुई. आखिरी सांस लेते समय उनके मुँह से आखिरी दो लब्ज निकले ‘वन्दे मातरम्’.

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