अनुशासन पर निबंध | Essay on Discipline in Hindi

अनुशासन पर निबंध (प्रस्तावना, कारण, उपाय और उपसंहार) | Essay on Discipline with Conclusion in Hindi | Anushasan Par Nibandh

प्रस्तावना

अनुशासन ही देश को महान बनाता है. यह कथन पूर्णत सत्य है. अनुशासित नागरिक ही देश को उन्नति के पथ पर अग्रसर करते हैं. इतिहास इस बात का साक्षी है कि किसी भी देश के नागरिकों की अनुशासनहीनता ही उस देश के पतन का कारण बन जाती है. सामान्य व्यक्ति, समाज और राष्ट्र का विकास अनुशासन के द्वारा ही संभव है.

राष्ट्र का निर्माण चट्टानों तथा वृक्षों से नहीं वरन उसके नागरिकों के चरित्र से होता है.

अनुशासन का अर्थ

अनुशासन(अनु+शासन) अर्थात(आज्ञा,आदेश) के अनुसार आचरण करना. बड़ों की आज्ञा मानना, नियमों, अधिकारियों के आदेश का पालन करना अनुशासन कहलाता है. सच्चा अनुशासन वही होता है जब विद्यार्थी अपनी इच्छा से आदेशानुसार कार्यों को करता है. अनुशासन केवल विद्यालय तक ही सीमित नहीं है अभी तो इसकी आवश्यकता सभी स्थानों पर रहती है. अनुशासन दो प्रकार का होता है- आत्मिक और ब्राह्य. आत्मिक में मानव अपनी प्रेरणा से अनुशासनबद्ध होता है, जबकि दूसरे में इसका कारण भय, दंड, आदर्श आदि होते हैं. इनमें आदमी का अनुशासन ही सर्वश्रेष्ठ माना गया है. प्लेटो के अनुसार “Discipline must be based on love and controlled by love” दंड को आज व्यक्तिगत विकास में बाधक माना जाने लगा है. अनुशासन को यदि आचरण मान लिया जाए तो व्यक्ति उसे आत्म प्रेरणा से ग्रहण करने लगता है.

अनुशासन का महत्व

अनुशासन का जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में महत्वपूर्ण स्थान है. अनुशासन से जीवन में सभी कार्य समय पर तथा उचित प्रकार से हो जाते हैं. अनुशासन से जीवन में नियमितता आती है तथा जीवन व्यवस्थित हो जाता है.

विद्यार्थी जीवन और अनुशासन

अनुशासन विद्यार्थी का प्राण होता है. कक्षा में अनुशासनहीनता का प्रदर्शन करने से न तो अध्यापक पढ़ा पाता है और ना ही छात्र पड़ सकता है. विद्यार्थी जीवन में अनुशासन का अर्थ है कि अध्यापक तथा विद्यालय के आदेश अनुसार विद्यार्थी का अनुशासित आचरण. विद्यार्थी को विद्यालय के नियमों का पालन, गुरुजमनों के आदर भाव तथा सहपाठी के साथ प्रेम का व्यवहार करना चाहिए.

आजकल छात्रों में अनुशासनहीनता बढ़ती जा रही है. विद्यालय तथा महाविद्यालय में हड़ताल, तोड़फोड़, लूटपाट अध्यापकों के साथ मारपीट, अनुचित व्यवहार आदि के समाचार पढ़ने को मिलते रहते हैं. राष्ट्र के भावी जीवन को सुंदर बनाने के लिए जिन मूल्यों एवं गुणों की आवश्यकता होती है, छात्र वर्ग उनके विध्वंस के लिए तत्पर है.

अनुशासनहीनता के कारण

अनुशासनहीनता के अनेक कारण हो सकते हैं. छात्रों में व्याप्त अनुशासनहीनता के प्रमुख कारण निम्न है.

दोषपूर्ण शिक्षा प्रणाली

भारतीय शिक्षा प्रणाली वास्तविकता से दूर है. यहां छात्रों को केवल पुस्तक ज्ञान प्रदान किया जाता है. इसका उद्देश्य क्लर्क उत्पन्न करना है. चारित्रिक एवं नैतिक मूल्यों की वृद्धि में आधुनिक शिक्षा में बहुत कम योगदान दिया है. अब परीक्षा पास करके डिग्री प्राप्त करना ही छात्रों का एकमात्र उद्देश्य रहेगा.

शिक्षकों का पतन

आधुनिक छात्र भी शिक्षकों की अवहेलना करते हैं. शिक्षकों ने भी अपनी गरिमा खो दी है. फल स्वरूप राष्ट्र के स्वरूप का निर्धारक शिक्षक अपने कर्तव्य के प्रति उदासीन हो गया है. फलतः वह प्राइवेट ट्यूशन पर अधिक ध्यान देने लगा है तथा अपने कर्तव्य को ही भूल गया है.

विद्यालयों में अनैतिक कार्य

विद्यालयों में अनेक ऐसे अनुचित कार्य किए जाते हैं जिनसे छात्रों में असंतोष की भावना विकसित होती है. इनमें छात्रों के धन का दुरुपयोग, अध्यापकों की परस्पर गुटबंदी तथा ऐसे ही अनेक प्रमुख कारण है. इन सभी बातों से छात्रों पर प्रभाव पड़ता है तथा इसका प्रभाव छात्रों के अनुशासनहीनता के रूप में दिखाई देता है.

शिक्षा का व्यवसायिक ना होना

आज लाखो छात्र डिग्रियां लेकर बेकार घूम रहे हैं. शिक्षा प्राप्ति के बाद भी युवक इस विषय में आशंकित रहता है कि उसे नौकरी मिलेगी या नहीं. बेरोजगारी की समस्या दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है.

अशिक्षित तथा अज्ञानी अभिभावक

अशिक्षा तथा अज्ञानता के कारण अभिभावक अपने बालकों को न तो उच्च शिक्षा दे पाते हैं और ना ही उनका पथ प्रदर्शन कर पाते हैं.

धार्मिक एवं नैतिक शिक्षा का अभाव

वर्तमान शिक्षा व्यवस्था में धार्मिक तथा नैतिक शिक्षा को उचित स्थान प्राप्त नहीं है. इन शिक्षाओं के अभाव में ना तो छात्रों का नैतिक विकास संभव है और ना ही आध्यात्मिक. परिणाम स्वरूप वह अनुशासनहीनता का शिकार हो गए है.

समाधान के लिए सुझाव

छात्रों में व्याप्त अनुशासनहीनता की भावना आज सरकार एवं समाज के सम्मुख विकट समस्या बनी हुई है. जिसे दूर करने के लिए कुछ सुझाव प्रस्तुत किए जा रहे हैं.

शिक्षा का गुणात्मक विकास

शिक्षा के प्रसार के साथ साथ छात्रों की संख्या में निरंतर वृद्धि होती जा रही है. किंतु उनके गुणात्मक विकास मैं निरंतर कमी होती जा रही है. देश में विद्यालयों की संख्या में वृद्धि हो रही है किंतु उनके पास उपयुक्त साधन नहीं है. आवश्यकता इस बात की है कि शिक्षा का संख्यात्मक विकास रोका जाए तथा गुणात्मक विकास किया जाए.

शिक्षा व्यवस्था में सुधार

अनुशासनहीनता की समस्या का समाधान करने के लिए हमें शिक्षा व्यवस्था में परिवर्तन करना पड़ेगा तथा उसे मानव जीवन से संबद्ध करना पड़ेगा. शिक्षा को सैद्धांतिक कम तथा व्यवसायिक अधिक बनाने की आवश्यकता है. इससे छात्रों की आवश्यकता की पूर्ति होगी और अनुशासनहीनता की समस्या दूर होगी.

परीक्षा प्रणाली में सुधार

वर्तमान शिक्षा प्रणाली परीक्षा प्रधान है. शिक्षा परीक्षा पर आधारित नहीं होनी चाहिए अभी तो उसका मूल्यांकन पूरे वर्ष में किए गए कार्यों के आधार पर होना चाहिए. इसी कारण छात्र वर्षभर अध्ययन में लगे रहेंगे तथा उन्हें अनुशासनहीनता के लिए समय ही नहीं मिलेगा.

अध्यापकों के आचरण में सुधार

शिक्षा के क्षेत्र में अध्यापक सबसे अधिक महत्वपूर्ण व्यक्ति है, उसके व्यक्तित्व का प्रत्यक्ष एवं स्पष्ट प्रभाव छात्र पर पड़ता है. अध्यापकों के आचरण में सुधार करने की आवश्यकता है. अध्यापकों का कर्तव्य है कि वे छात्रों को सच्चे ध्येय की ओर अग्रसर होने के लिए प्रेरित करें. इसके लिए अध्यापकों को दलगत राजनीति, स्वार्थ, भेदभाव, व्यवसायिक बुद्धि आदि को छोड़ना पड़ेगा. कर्तव्य विमुख अध्यापकों के विरुद्ध भी अनुशासनात्मक कार्यवाही अपेक्षित है.

धार्मिक तथा नैतिक शिक्षा

छात्रों में समुचित नैतिकता तथा आदर्शों का विकास करने की दृष्टि से धार्मिक तथा नैतिक शिक्षा की व्यवस्था की जानी चाहिए, ताकि वह अनुशासन के महत्व को स्वीकार करते हुए आचरण करें.

सृजनात्मक क्रियाएं

विद्यालय में उपयोगी तथा आर्थिक रचनात्मक क्रियाओं की व्यवस्था होनी चाहिए. इन क्रियाओं से छात्रों को अधिक लाभ होगा तथा विद्यालय आर्थिक लाभ उठा सकेंगे.

राजनीतिक प्रतिबंध

गंदी संकीर्ण तथा स्वार्थपरता से युक्त राजनीति को विद्यालय की सीमा से बहुत दूर रखना चाहिए. छात्रों को राजनीति का व्यावहारिक ज्ञान कराना आवश्यक है किंतु उन्हें गंदी और संकीर्ण राजनीति से दूर रखना भी आवश्यक है. इसके लिए राजनीतिक संस्थाओं पर प्रतिबंध रखना चाहिए.

उपसंहार

उपयुक्त उपायों को लागू किया जाए तो छात्रों में व्याप्त अनुशासनहीनता समाप्त हो जाएगी. जनतंत्र और शिक्षा की मूलभूत बातों के आधार पर यह स्वीकार करना होगा कि अनुशासन का मानव जीवन में विशिष्ट स्थान है. रविंद्र नाथ टैगोर के अनुसार- “ सफल शिक्षा समग्र जीवन को संपूर्ण रूप से प्रभावित करती है. यदि अनुशासन के महत्व को नहीं समझा गया तो हमारी स्वतंत्रता भी खतरे में पड़ जाएगी”. इसी विषय में सावधान करते हुए श्री हरि कृष्ण प्रेमी जी ने कहा है-

देश को बल युक्त करने, यदि नचले अनुशासन से हम.
तो कल देगा फिर हमें, दासता की जंजीर पहनना.
हे सरल आज़ाद होना, पर कठिन आज़ाद रहना.

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