क्या था चौरी-चौरा कांड, और कैसे इसने बदला भारत का इतिहास | Chauri Chaura kand in hindi

Chauri Chaura (or Chora Chori) kand, Impact in Indian History, List of Revolutionaries in Hindi | चौरा-चौरी कांड और इसका भारतीय इतिहास में प्रभाव

चौरी-चौरा कांड आजादी के आन्दोलन का एक गुमनाम पन्ना हैं जिसे इतिहास के पन्नो में कोई जगह नहीं दी गई. यह वही आन्दोलन हैं जिस राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने चौरी-चौरा का अपराध करार दिया. इतिहासकारों का यह भी कहना हैं की महात्मा गाँधी ने चौरी-चौरा कांड के कारण ही असहयोग आन्दोलन वापिस ले लिया था. चौरी-चौरा कांड में शामिल सपूतों ने ब्रिटिश हुकूमत को हिलाकर रख दिया था.

तारीख4 फरवरी 1922
जगहचौरी-चौरा,गोरखपुर जिला (उत्तरप्रदेश)
सजा19 क्रांतिकारियों को फांसी की सजा
किस आन्दोलन का हिस्साअसहयोग आंदोलन

क्या है चौरी-चौरा कांड (Chauri Chaura kand in Hindi)

चौरी-चौरा उत्तरप्रदेश के गोरखपुर जिले में एक गांव हैं. जो ब्रिटिश शासन काल में कपड़ों और अन्य वस्तुओं की बड़ी मंडी हुआ करता था. अंग्रेजी शासन के समय गांधीजी ने असहयोग आंदोलन की शुरुआत की थी. जिसका उद्देश्य अंग्रेजी शासन का विरोध करना था. इस आन्दोलन के दौरान देशवासी ब्रिटिश उपाधियों, सरकारी स्कूलों और अन्य वस्तुओं का त्याग कर रहे थे और वहाँ के स्थानीय बाजार में भी भयंकर विरोध हो रहा था. इस विरोध प्रदर्शन के चलते 2 फरवरी 1922 को पुलिस ने दो क्रांतिकारियों को गिरफ्तार कर लिया था. गिरफ़्तारी का विरोध करने के लिए करीब 4 हजार आन्दोलनकरियों ने थाने के सामने ब्रिटिश शासन के खिलाफ प्रदर्शन और नारेबाजी की. इस प्रदर्शन को रोकने के लिए पुलिस ने हवाई फायरिंग की और जब प्रदर्शनकारी नहीं माने तो उन लोगों पर ओपन फायर किया गया. जिसके कारण तीन प्रदर्शनकारियों की मौत हो गई और कई लोग घायल हो गए. इसी दौरान पुलिसकर्मियों की गोलिया खत्म हो गई और प्रदर्शनकारियों को उग्र होता देख वह थाने में ही छिप गए.

Chauri Chaura kand in hindi

अपने साथी क्रांतिकारियों की मौत से आक्रोशित क्रांतिकारियों ने थाना घेरकर उसमे आग लगा दी. इस घटना में कुल 23 पुलिसकर्मियों की जलकर मौत हो गई थी. जिसमे तत्कालीन दरोगा “गुप्तेश्वर सिंह” भी शामिल थे. यह घटना जब गांधीजी को पता चली तो उन्होंने अपना असहयोग आंदोलन वापस ले लिया.

चौरी-चौरा कांड मुकदमा और सजा (Chauri Chaura kand Case and Panishments)

9 जनवरी 1923 के दिन चौरी-चौरी कांड के लिए 172 लोगों को आरोपी बनाया गया था और फांसी की सजा दे दी गई थी. इलाहाबाद हाई कोर्ट में पी.आई.एल दायर की गई थी. इस कांड में क्रांतिकारियों की ओर से मुकदमा पंडित मदन मोहन मालवीय ने लड़ा था. जिसके बाद 19 मुख्य आरोपी अब्दुल्ला, भगवान, विक्रम, दुदही, काली चरण, लाल मुहम्मद, लौटी, मादेव, मेघू अली, नजर अली, रघुवीर, रामलगन, रामरूप, रूदाली, सहदेव, सम्पत पुत्र मोहन, संपत, श्याम सुंदर व सीताराम को इस घटना के लिए फांसी दी गई थी और बाकी लोगों को सबूतों के अभाव के चलते छोड़ दिया गया या फिर यह कहे की मदन मोहन मालवीय के द्वारा सुनवाई के दौरान दिए तथ्यों से कोर्ट को उन्हें छोड़ना पड़ा.

इतिहासकार मानते हैं कि गुप्तेश्वर सिंह ने एक फरवरी को भगवान अहीर को लाठियों से पीटा न होता तो शायद 4 फरवरी की भयावह आग लगती ही नहीं और न ही गुप्तेश्वर सिंह अपने 23 सहयोगियों के साथ मरते न भगवान अहीर समेत 19 लोग फांसी पर चढ़ते.

चौरी-चौरा कांड का प्रभाव (Impact of Chauri Chaura kand in Indian Revolution)

गांधीजी चौरी-चौरा कांड से बहुत नाराज थे. जिसके कारण उन्होंने असहयोग आन्दोलन वापस ले लिया था. गाँधीजी इस निर्णय से रामप्रसाद बिस्मिल और उनके नौजवान साथियों से नाराज थे. जिसके कारण कांग्रेस दो विचारधाराओ में विभाजित हो गई. एक था नरम दल और दूसरा गरम दल. शहीद-ए-आजम भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु, राम प्रसाद बिस्मिल और चंद्रशेखर आजाद जैसे कई क्रांतिकारी गरम दल के नायक बने.

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लेकिन ये हमारे लिए दुर्भाग्य का विषय था कि चौरी-चौरा थाने में 23 पुलिसवालों की स्मृति में तो पार्क बनाया गया मगर इन शहीदों की याद में लंबे समय तक कोई स्मारक नहीं था. पूर्व प्रधानमंत्री स्व. इंदिरा गांधी ने चौरी-चौरा की घटना के 60 साल बाद शहीद स्मारक भवन का 6 फरवरी, 1982 को शिलान्यास किया था. जबकि पूर्व प्रधानमंत्री स्व. नरसिम्हा राव ने 19 जुलाई, 1993 को इसका लोकार्पण किया. चौरी-चौरा के आंदोलनकारियों की याद में बना यह स्मारक आज रख-रखाव के अभाव में बदहाल हो चुका है.

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5 thoughts on “क्या था चौरी-चौरा कांड, और कैसे इसने बदला भारत का इतिहास | Chauri Chaura kand in hindi”

  1. चौरी चौरा कांड का परिणाम 20 अप्रैल 1923 को सामने आया
    और इसमें कई लोगो को फाँसी हुई
    इस घटना के कारण देश में बहुत बुरा माहौल हुआ क्यूंकि कई निर्दोषों की जान गई
    पर किसकी गलती थी यह समझना आज भी नामुमकिन हैं

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