Chipko Movement (Aandolan) History, Impacts, Objectives and Conclusion in Hindi | चिपको आन्दोलन क्या था और इसका क्या प्रभाव पड़ा
वर्ष 1974 तक, भारत को आज़ाद हुए 27 साल हो चुके थे. भारत लगातार प्रगति की ओर बढ़ रहा था हर क्षेत्र में भारत के व्यापारी कारगर सिद्ध हो रहे थे. भारत में लकड़ी का व्यापार भी बढ़ने लगा था हर लकड़ी व्यापारी को लकड़ी की ज़रुरत होती थी. इसी कारण जंगलों पर दबाव बढने लगा. हर कोई लकड़ियों के काटने से परेशान था इसी कारण सन् 1973 में एक आन्दोलन चलाया गया जिसका नाम था चिपको आन्दोलन.
महिलायें और पुरुष पेड़ के आस-पास खड़े, एक दुसरे के हाथ को पकड़े हुए पेड़ों की सुरक्षा कर रहे थे. ये दृश्य उत्तरप्रदेश राज्य के चमोली जिले का है. चिपको आन्दोलन सुन्दरलाल बहुगुणा के नेतृत्व में शुरू हुआ था. यह आन्दोलन पेड़ की कटाई के खिलाफ विरोध करने का सबसे सफल आन्दोलन था. उस आन्दोलन को समाप्त हुए 45 वर्ष हो चुके है.
पहला चिपको आन्दोलन (First Chipko Movement)
पहली बार 18वीं सदी में राजस्थान के खेजरली गाँव में 363 लोगो ने खेजरी पेड़ को बचाने के लिए चिपको आन्दोलन किया था. उस दौरान अमृता देवी नाम की महिला ने आन्दोलन का नेतृत्व किया. जोधपुर के राजा ने पेड़ों को काटने का आदेश दिया था लेकिन अमृता देवी ने चिपको आन्दोलन को शुरू करके पेड़ों को काटने से बचा लिया. उस घटना के बाद राजा ने राज्य में पेड़ की कटाई पर प्रतिबंध लगा दिया.
आधुनिक चिपको आन्दोलन (Modern Chipko Movement)
सन् 1973 का आन्दोलन महात्मा गाँधी के सिद्धांत के अनुसार था. आन्दोलन में अहिंसावादी महिला और पुरुष ने भाग लिया. हिमालय के जंगलों में होने वाली पेड़ की कटाई के खिलाफ एक ठोस आन्दोलन था. आन्दोलन से पहले ठेकेदार ने लोगों और सरकार को विकास के नाम पर बेवक़ूफ़ बनाकर पेड़ काटने की इजाज़त ली. पेड़ की कटाई और पारिस्थितिक संतुलन के बिगड़ने के कारण चमोली जिले में इस आन्दोलन की 1973 में शुरुआत हुई थी.
इस आन्दोलन को भारत के अन्य राज्य में फैलने में समय नहीं लगा. इस आन्दोलन को चिपको आन्दोलन इसलिए कहा जाता है क्योंकि इस आन्दोलन में महिलाओं और पुरुषों ने पेड़ से चिपककर अपना विरोध दर्शाया था.
चिपको आन्दोलन एक ऐसा आन्दोलन था जिसमे गाँधी जी की सत्याग्रह की नीति को अपनाते हुए पुरुष और महिला आन्दोलनकारियों ने अहिंसा से आन्दोलन में भाग लिया. गौरा देवी, सुदेशा देवी, बचनी देवी और चंदी प्रसाद भट्ट ने मुख्य रूप से आन्दोलन में अपना योगदान दिया.
![History of Chipko Movement in Hindi](https://dilsedeshi.com/wp-content/uploads/2018/08/History-of-Chipko-Movement-in-Hindi-2.jpg)
रैणी गांव का आन्दोलन (Chipko Movement of Reni Village)
सन् 1974 में उत्तराखंड सरकार ने रैणी गांव में अलकनंदा नदी के किनारे 2500 पेड़ों की कटाई की नीलामी कर दी. तब गाँव की महिलाओं ने पेड़ों से चिपककर उस फैसले का विरोध किया. 24 मार्च 1974 को रैंणी में पेड़ की कटाई शुरू होने ही वाली थी. तब एक लड़की ने गौरा देवी को बताया. तभी गौरा देवी गाँव की 27 महिलाओं को लेकर उस जगह चली गयी जहाँ कटाई हो रही थी. वहां जाकर लक्कड़हारो को पेड़ काटने से रोका. दोनों पक्षों में बातचीत शुरू हुई पर विफल रही. लकडहारे और ठेकेदार महिलाओं को चिल्लाने लगे. उन लोगों ने महिलाओं को गालियां भी दी और उन्हें बन्दूक दिखाकर धमकाने लगे. परन्तु महिलाएं शांतिपूर्वक आन्दोलन करती रही. वे पेड़ से चिपकी रही. आन्दोलन की खबर आस-पास के गाँवों में आग की तरह फ़ैल गयी. कुछ समय बाद आन्दोलन की खबर राज्य के मुख्यमंत्री हेमवती नंदन बहुगुणा तक जा पहुंची. उन्होंने मामले को सुलझाने के लिए एक मीटिंग बुलाई. अंत में फैसला गाँव वालों और आन्दोलनकारियों के पक्ष में ही आया.
यह आन्दोलन पर्यावरण की रक्षा के लिए पूरे भारत और विश्व के लिए एक मिसाल था. 1977 में रैणी गांव की महिलाओं ने रक्षाबंधन के दिन पेड़ पर राखी बांधकर उनकी रक्षा करने का प्रण लिया.
![History of Chipko Movement in Hindi](https://dilsedeshi.com/wp-content/uploads/2018/08/History-of-Chipko-Movement-in-Hindi-1.jpg)
भारत को आज भी चिपको आन्दोलन की ज़रुरत है
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक हरियाणा ने 15000 वर्ग किलोमीटर का जंगली हिस्सा विलुप्त हो चुका हैं. सरकार ने जो आंकड़े दिये है वो तो पेड़ों की कटाई का छोटा सा हिस्सा है. प्रोफेसर टी.वी. रामचंद्र सेण्टर फॉर इकोलॉजिकल साइंसेज और इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ साइंस, बैंगलोर में प्रोफेसर है, उनकी जाँच के मुताबिक़ पिछले 10 साल में उत्तरी, मध्य और दक्षिण-पश्चिमी घाट में जंगली हिस्सा क्रमशः 2.84%, 4.38% और 5.77% कम हुआ है.
दूसरी रिपोर्ट के मुताबिक आज के समय में 25,000 हेक्टेयर का जंगल यानि की पूरे चंडीगढ़ का 2 गुना हिस्सा हर साल गैर वनिक गतिविधियों के लिए सौंप दिया जाता है. जिसमे रक्षा परियोजना, बाँध निर्माण, बिजली घर, उद्योग और सड़क निर्माण शामिल है.
आज के समय में एक बात अच्छी ये है कि जंगल भारत के 21.34% हिस्से में फैला हुआ है. भारत में मौजूदा जंगल 7,01,673 वर्ग कि.मी. तक फैला हुआ है. 29 साल पहले ये आंकड़ा 6,40,819 वर्ग कि.मी. था. रक्षा परियोजना, बांध निर्माण और खनन परियोजना के लिए जंगल का अधिकतर हिस्सा दे दिया गया है.
जिस तरह से शहर की जनसंख्या बढ़ रही है उसी प्रकार शहर को फैलाया जा रहा है और पेड़ों को काटा जा रहा है. इससे वातावरण में अशुद्धि फ़ैल रही है. जो कि आने वाले समय में घातक साबित होगी. यही समय है सँभालने का पेड़ों की कटाई को रोकने के लिए सभी को आगे आकर इसका विरोध करना चाहिए और ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाने चाहिए.
इसे भी पढ़े :
- जन आन्दोलन क्या होता हैं और इसका महत्व
- स्वदेशी आन्दोलन के बारे में विस्तृत जानकारी
- खिलाफत आन्दोलन एक राष्ट्र विरोधी ही नही अपितु एक हिन्दू विरोधी आन्दोलन था
ऐसे ही चिपको आंदोलन होना चाहिए।आज पूरे विश्व में वैश्विक महामारी चरम सीमा पर पहुंच गई है, लेकिन किसी को ध्यान नहीं है, कि इस बाबत इसे कैसे रोका जाए।
अगर वन विभाग को बढ़ावा नहीं दिया गया तो ऐसे ही तरह- तरह के बीमारी से लोग ग्रसित होते रहेंगे। अतः हमें सभी से आग्रह है कि अस्पताल और दवाईयों को छोड़ पेंड लगाने और व्यायाम करने पे ज्यादा से ज्यादा ध्यान देना आवश्यक है।