लौह स्तम्भ से जुडी रोचक जानकारियां | Interesting Facts About Iron Pillar of Delhi

लौह स्तम्भ किसने और किसके लिए बनवाया, जानिए इससे जुडी रोचक जानकारियां | Iron Pillar (Lauh Stambh) History and Interesting Fact in Hindi

भारत की राजधानी दिल्ली में खड़ा लौह स्तम्भ वैज्ञानिकों के लिए बहुत बड़ा आश्चर्य का विषय हैं. इस लौह स्तम्भ में लोहे की मात्रा 98 प्रतिशत हैं. ये स्तम्भ 1600 साल से भी ज्यादा पुराना व खुले आसमान में खड़ा हैं और इसे आज तक इंच मात्र भी जंग नहीं लगा. इसी कारण यह दुनिया भर के लिए आश्चर्य का विषय है.

लौह स्तम्भ (Lauh Stambh)
क्र. म.बिंदु(Points)जानकारी (Information)
1.जगह(Location)महरौली, दिल्ली
2.ऊँचाई(Height)7 मीटर
3.कब बना (Built)1600 साल से भी पूर्व
4.वजन (Weight)6000 किलो

इतिहासकारों के अनुसार सन 1739 में नादिरशाह जब दिल्ली पहुंचा और उसने ये सुना कि यह स्तम्भ किसी हिन्दू राजा की याद में बनाया गया हैं. तब उसने इस स्तम्भ पर तोप चलाने का आदेश दे दिया था. जिसके कारण इस स्तम्भ पर खरोच के निशान भी हैं.

जब इस स्तम्भ पर तोप से हमला किया गया तब इस स्तम्भ को तो मामूली खरोच आई लेकिन इस स्तम्भ के पास ही एक मस्जिद गिर गई थी. जिसके बाद उस राजा ने अपना इरादा बदल दिया और तोप से हमला बंद करा दिया.

लोहे का बना यह स्तम्भ 7 मीटर ऊँचा हैं. और इसका वजन 6000 किलो से भी अधिक हैं. इस लौह स्तम्भ का एक मीटर हिस्सा भूमिगत हैं. वैज्ञानिकों के अनुसार इस लौह स्तम्भ का निर्माण लोहे के टुकड़ों को गर्म करके जोड़कर किया गया था. लेकिन इस स्तम्भ पर कही भी जोड़ के निशान नहीं हैं.

रॉबर्ट हेड जो कि एक धातु वैज्ञानिक हैं उन्होंने इस लौह स्तम्भ पर अध्ययन करके अपने शोध में लिखा कि यह स्तम्भ रॉ आयरन से बना हैं. जिसे पिघलाने में 2000 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान की जरुरत होती हैं. लेकिन आश्चर्य की बात तो यह हैं कि प्राचीन समय में यह प्रक्रिया कैसे की गयी होगी. इस लौह स्तम्भ में 98 प्रतिशत लोहा, 1 प्रतिशत फॉस्फोरस, 0.66 प्रतिशत लीड, 0.17 प्रतिशत ब्रास और 0.17 प्रतिशत बेल मेटल हैं. जब बारिश का पानी इस लोहे के स्तम्भ से रियेक्ट करता हैं. जिससे एक तत्व तैयार होता हैं जिसे मिसा वाइट कहते हैं. यह मिसा वाइट इस लोहे के स्तम्भ पर एक परत का निर्माण करता हैं. जो इसे जंग लगने से बचाता हैं.

Interesting Facts About Iron Pillar of Delhi

इस स्तम्भ पर संस्कृत भाषा में एक शिलालेख लिखा हैं. जिसके अनुसार

“इस लौह स्तम्भ को मथुरा में विष्णु पहाड़ी पर भगवान विष्णु के मंदिर के सामने एक ध्वज स्तम्भ के रूप में लगाया गया था. बाद में इस स्तम्भ को दिल्ली के संस्थापक अनंगपाल द्वारा फहराया गया. इस स्तम्भ पर लिखी पंक्तियों के अनुवाद से पता चलता हैं कि चन्द्र नाम का राजा जिसका साम्राज्य पूरे भारत वर्ष में हिन्द महासागर तक फैला था. वह राजा खिन्न होकर पृथ्वी छोड़कर विष्णुलोक चला गया परन्तु उसका प्रभाव आज भी धरती पर कायम हैं.”

कुछ इतिहासकारों के अनुसार यह स्तंभ सम्राट अशोक का है जो उन्होंने अपने दादा चंद्रगुप्त मौर्य की याद में बनवाया था लेकिन अगर हम इतिहास को देखे तो पता चलता हैं कि चन्द्रगुप्त मौर्य का शासन कभी भी हिन्द महासागर तक नहीं पहुंचा.

इतिहासकारों के अनुसार के इतिहास में चन्द्रगुप्त मौर्य के अलावा चन्द्र नाम का कोई दूसरा राजा नहीं था लेकिन हम हमारी पौराणिक कथाओ को देखें तो भगवान राम को रामचंद्र भी कहा जाता हैं और माता सीता की खोज में वो हिन्द महासागर तक पार करके गए थे. पद्म पुराण के अनुसार भगवान रामचंद्र पृथ्वी छोड़कर विष्णु लोक चले गए थे और यह घटना लौह स्तम्भ के शिलालेख पर लिखी हुई हैं.

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