लूडो का इतिहास और उससे जुडी कहानियां | History of Ludo Game in Hindi

History of Ludo Game and Related Story in Hindi | लूडो खेल का इतिहास और उससे जुडी कुछ कहानियां

भगवत गीता में लिखा हैं, जिंदगी एक खेल हैं और खेलना हमारा धर्म हैं. प्राचीन भारत में खेल को अधिक महत्व दिया जाता था. भारत ऐसा देश हैं, जहां भगवान स्वयं खेल खेलते थे. जी हाँ, आज आपको एक ऐसे खेल (Board Game) के बारे बताने जा रहे हैं. जो पूरे विश्व में लोकप्रिय हैं. बहुत से पश्चिम देश दावा करते है कि इस खेल का अविष्कार उन्होंने किया हैं परन्तु इस खेल का सम्बन्ध प्राचीन भारत से हैं. आइये जानते हैं बोर्ड (Board Games) पर खेले जाने वाले प्रमुख खेल लूडो के इतिहास से जुड़ी रोचक जानकारियों के बारे में.

लूडो (ludo)

इस खेल को तो आप बखूबी जानते हैं. लूडो आज के समय का सबसे प्रसिद्ध खेल हैं. अपने कभी न कभी तो इस खेल को अवश्य ही खेला होगा. यदि हम इस खेल की जड़ो को ढूंढने जाये तो हमारे सामने आती हैं पौराणिक महाकाव्य महाभारत वह घटना जिसमें पांडवों ने द्रोपदी को दांव पर लगा दिया था.

लूडो को उस समय “पच्चीसी” के नाम से जाना जाता था. महाभारत के युद्ध का कारण यह पच्चीसी का ही खेल था. सिर्फ महाभारत में ही नहीं बल्कि हिन्दू पौराणिक कथाओ में भी पच्चीसी का उल्लेख मिलता ही. पच्चीसी से संबंधित लगभग सभी हिन्दू देवी-देवताओ से जुड़ी कहानियां हैं.

एक उदाहरण में श्री कृष्णा यह खेल सत्यभामा के साथ खेलते हुए नजर आते हैं. एक मत तो यह भी हैं यह खेल कैलाश पर्वत पर माता पार्वती और शिव जी द्वारा खेला गया था.

इतिहास में पच्चीसी का सबसे पहला उल्लेख हमें मिलता हैं 16 वीं सदी में मुग़ल सल्तनत के सबसे प्रभावशाली राजा अकबर के दरबार में, उन्होंने फ़तेहपुर सिकरी के दरबार में एक विशाल पच्चीसी के बोर्ड का निर्माण करवाया था. जहां वे अपनी दासियों को खेल में प्यादों के रूप में इस्तेमाल करते थे. और शानदार तरीके से पच्चीसी के खेल का लुफ्त उठाते थे. इस खेल पर किये गए शोध अनुसार यह खेल 2000 साल से भी ज्यादा पुराना हैं. अकेले मैसूर में ही यह खेल दस तरीके से खेला जाता है, तो आप सोच सकते है पूरे भारत में कितने तरीके से खेला जाता होगा.

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इस खेल के 15 से 20 अलग-अलग नाम हैं. हम इसे पगड़े, पच्चीसी, चौपड, चौसड, दायकटम,सोकटम और वर्जेस आदि नामो से भी जाना जाता हैं. पच्चिसी में चार खिलाडी खेलते हैं. परन्तु दक्षिण के राजा की बदौलत इस खेल में कई बदलाव आये.

19 वी सदी में मैसूर के राजा कृष्णराज वोडीयार तृतीय की चार पत्नियां थी और 22 से भी ज्यादा दासिया थी और वे अपनी सभी पत्नियों के साथ पच्चीसी का खेल खेलना चाहते थे. इसलिए उन्होंने 6 खिलाडियों वाला पच्चीसी बोर्ड बनाया. और आगे चलकर उन्होंने 8, 12 और 16 खिलाडियों वाले पच्चीसी का निर्माण करवाया ताकि वो अपने सभी दासियों के साथ भी यह खेल खेल सके.

महाराज वोडियार सिर्फ यही नहीं रुके उन्होंने इस खेल कई बदलाव किये. पच्चीसी के बोर्ड पर उन्होंने नैतिकता जोड़कर इस खेल का रूप ही बदल दिया. उसमे अलग-अलग पायदान पर कर्मो के अनुसार मनुष्य के अगले जन्म की कल्पना की गई हैं जैसे यदि आप अच्छे कर्म करते हैं तो आपको अगले जन्म में राजसिंहासन प्राप्त होगा. महाराजा वोडियार ने इस खेल को धर्म और चरित्र से जोड़ दिया.

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