निर्दय माँ ने नवजात को जंगल में फेंक दिया था जानिए पूरा सच…

एक नवजात बच्ची को किसी ने गांव बाबुल्दा व तोरनिया के बीच के जंगल में भगवान के भरोसे छोड़ दिया था. वो बच्ची. वहा पर खड़ी एक गाय उसे देखकर रंभा रही थी. और गाय की रम्भाने के कारण ही वहां से गुजरते हुए एक महिला की नजर उस बच्ची पर पड़ी. कांपती हुई बच्ची को देख वह सिहर उठी. महिला ने लपककर बच्ची को उठाया और सीने से लगाकर घर ले आई. घर पर उसका उचित घरेलू उपाय किया, उसकी सिंकाई की, दूध पिलाया और फिर सीधे अस्पताल ले गई, जहां बच्ची का उपचार चल रहा है. और बच्ची अब पूरी तरह स्वस्थ है.

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मुरलीबाई पति रामचंद्र (45) को बच्ची रविवार शाम 5 बजे मिली थी. मुरलीबाई खाखरी निवासी है जो तौरनिया जा रही थी जिससे रास्ते में बच्ची मिली. वह बच्ची को घर ले जाने के बाद जिला अस्पताल ले गई. सोमवार सुबह 10 बजे मुरलीबाई कलेक्टोरेट पहुंची. यहां उपस्थित भृत्य देवीलाल देवड़ा को मामले की जानकारी देकर मरलीबाई ने कलेक्टर से मिलने का अनुरोध किया. उसके बाद ही सूचना पर सिटी कोतवाली एएसआई आर.एल. प्रजापति कलेक्टोरेट पहुंचे और महिला से पुरे मामले की पूछताछ की और उनके बयान लिए. इस दौरान डीपीसी अनिल भट्ट भी टीएल मीटिंग के लिए कलेक्टोरेट पहुंच गए थे. उन्होंने शासकीय वाहन की व्यवस्था की तथा महिला व बच्ची को फिर से जिला अस्पताल ले गए. जहां डॉक्टरों ने बच्ची का इलाज किया. और बच्ची को नया जीवन दिया.

जन्म होते ही फेंक दिया था बच्ची को

नवजात बच्ची का चिकित्सको ने परीक्षण किया. और परीक्षण करके उन्होंने बताया की नवजात 18 से 24 घंटे के बीच जन्मी है. उसका वजन 2 किलो है जो कि सामान्य से 500 ग्राम कम है. हालांकि अब वह पूरी तरह स्वस्थ है. डॉ. अरविंदकुमार वर्मा, शिशु रोग विशेषज्ञ, जिला चिकित्सालय, मंदसौर ने बच्ची का चेकअप किया.

रातभर बच्ची के पास ही रही महिला

मुरलीबाई के अनुसार वह अपने पति व दो बेटों के साथ बाबुल्दा गाँव में रहती है. यहां मजदूरी कर परिवार चलाती है. वह रविवार शाम को पैदल ही तोरनिया जा रही थी. रास्ते में उसने देखा की एक गाय रंभा रही है. उसने गाय के पास देख तो गाय के पैरों के पास कुछ नजर आया. वह पास गाय के पहुंची तो गाय के पैरो में बच्ची दिखी. बच्ची ठंड से कांप रही थी. इसलिए उसे घर लेकर आई और सिंकाई की. इसके बाद बस में बैठकर मंदसौर आ गई. यहां रातभर जिला अस्पताल में ही रुकी और बच्ची का उपचार करवाया. मुरलीबाई ने बताया की वह उस बच्ची को गोद लेना चाहती थी इसलिए कलेक्टर साहब से मिलने आ गई.

माँ मैं जीना चाहती हूं…

मैंने तो अभी ठीक से आंखें भी नहीं खोली थीं कि हमेशा के लिए मुझे सुलाने के लिए जंगल में फेंक दिया. आखिर क्यों मुझे ठिठुरते मौसम में मरने के लिए छोड़ा? मैं जीना चाहती हूं…माँ.

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