“धर्मो रक्षति रक्षित:” श्लोक का अर्थ एवं धर्म क्या है?

“धर्मो रक्षति रक्षित:” श्लोक एवं “धर्म” का अर्थ, धर्म क्या है? धर्म की परिभाषा क्या है व धर्म किसे कहते है 

श्लोक – धर्मो रक्षति रक्षित: ॥
अर्थ – आप धर्म की रक्षा करें, धर्म आपकी रक्षा करेगा।

धर्म के कई अर्थ बताए जाते है। किंतु इसका अर्थ अभी भी कई लोगों को स्पष्ट नहीं है।

धर्म का अर्थ

धर्म का एक अर्थ ‘नियम/नियमावली/नियम-समुह’ भी समझ में आता है। इसप्रकार, धर्म का अर्थ मुख्यत: ‘ईश्वरीय, नैतिक व प्राकृतिक नियमों’ से है, पर साथ ही इसमें अन्य ‘सामाजिक मान्यता प्राप्त नियम’ भी सम्मिलित है। अत: धर्म का अर्थ हुआ – किसी कार्य, स्थान या परिस्थिति विशेष के लिए बनाए गए कायदे-कानून, रुल्स, प्रोटोकॉल, नियम आदि।

यानि, “भगवान ‘को’ मानने” के साथ ही “भगवान ‘की’ मानना” धर्म है। “भगवान ‘को’ मानने” पर – आप भगवान का अस्तित्व स्वीकारते है, जबकि “भगवान ‘की’ मानने” से तात्पर्य है कि – आप भगवान के बताए नियम, दिशा-निर्देश, आदेश, शब्द मानते हैं व उनपर चलते है।

हम लोग धनुर्धर अर्जुन जैसे पुण्यात्मा, बुद्धिमान व योग्य नही है। इसलिए हमें समझाने के लिए भगवान स्वयं नही आने वाले। हमें भगवान के शब्द अपने माता-पिता, धार्मिक ग्रंथों, परिवार के बड़ों, सदगुरु, संतों व धार्मिक पुस्तकों आदि के माध्यम से स्वयं समझने होंगे। यहां सबसे महत्वपुर्ण है हमारा ‘ईश्वर प्रदत्त’ 1.5 किलो का मस्तिष्क। ईश्वर के शब्द समझने हेतु हमें ईश्वर द्वारा उपहार के रुप में मिला दिव्य मस्तिष्क (बुद्धि, विवेक, ज्ञान, विद्या आदि) सबसे प्रमुख हैं। इस ‘दिव्य मस्तिष्क’ की प्रामाणिकता किसी भी धार्मिक ग्रंथ से भी अधिक है, ये शुद्ध रुप से सीधे ईश्वर से हमें प्राप्त हुआ है।

धर्म का अर्थ ‘नियम’ : उदाहरण :-

1) नैतिकता के नियम : चोरी नहीं करना :-
चोरी करना पाप है, इसलिए चोरी नही करना चाहिए। चोरी, अर्थात किसी के अधिकार की कोई चीज उससे जबरदस्ती या उसकी अनुमति के बिना लेना। यदि किसी व्यक्ति ने चोरी नही की है, चोरी ना करने के नियम को माना है – अनुपालन किया है, तो उसकी दंड से स्वत: रक्षा हो जाएगी। यदि किसी निर्दोष को फंसाया जाता है, तो भी उसकी कानुनी दंड से रक्षा की संभावना बहुत अधिक होती है और ईश्वर कृत प्राकृतिक कर्म-फल सिद्धांत के अनुसार तो उसको संबंधित अपराध का दंड मिलेगा ही नही।

2) ट्रेफिक रुल्स :-
यदी आप सड़क पर अपने पर लागु यातायात नियमों के अनुसार चलते है, अपने नियमों की रक्षा करते हैं, तो वो नियम आपको सुरक्षित रखते हैं।
…यहां यह उल्लेखनीय है कि नियम-समुह रुपी धर्म हमें ‘बंधक’ नहीं बनाता हैं, बल्कि ‘अनुशासित’ करता है। धर्म आपकी स्वतंत्रता को अनुशासित कर दीर्घकालिन (लंबे समय तक चलने वाली) बनाता है। धर्म ‘स्वयं की स्वतंत्रता’ एवं ‘दूसरे मानवों की स्वतंत्रता’ के बीच तालमेल बनाता है। यातायात नियम मानकर आप अपनी कहीं भी आने-जाने की स्वतंत्रता और दूसरे ‘मानवों’ की कहीं भी आने-जाने की स्वतंत्रता, दोनों की रक्षा करते है। यदी आप यातायात नियम ना मानें तो पुलिस या आप से परेशान दूसरे मानव आपकी आने-जाने की स्वतंत्रता को देर-सबेर बंधक बना लेंगें।

3) भूकंप के समय के नियम :-
यदी आप भुकंप के समय के नियमों का पालन करते हैं – जैसे टेबल के नीचे बैठना, खुले मैदान में आना आदि, तो ये नियम आपके रक्षक बन जाते हैं।

4) कोविड प्रोटोकॉल/नियमावली :-
कोविड से बचने के भी कुछ नियम हैं, जिनमें 3 नियम प्रमुख है – मास्क पहनना, दूरी बनाए रखना, बार-बार हाथ धोना। आप अपने पर लागु कोविड नियमों की रक्षा करेंगें, उनका पालन करेंगें, तो ये नियम ही आपके रक्षक बन जाएंगे।

हमारे वर्तमान (2014-2024) प्रधानमंत्री के एक भाषण से प्रेरित धर्म की ‘नियमावली’ की परिभाषा है जिसमें उन्होंने ‘धर्म’ की तुलना ‘लॉ/कानुन’ से की थी।

धर्म की एक प्रमुख परिभाषा

धर्म की उपरोक्त परिभाषा के अलावा धर्म की एक प्रमुख परिभाषा है – ‘जिसे धारण किया जाए, वो धर्म है’।

"पुजा-पाठ, मंदिर-दर्शन, हवन आदि 'धार्मिक क्रियाएं' एवं काम, क्रोध, मोह, लोभ, अहंकार, राग-द्वेष, ईर्ष्या आदि को नियंत्रित करने का 'आध्यात्मिक श्रम' - इन दोनों को मिलाकर भी धर्म की परिभाषा निर्मित होती है।"

अपने भगवतियों-भगवानों के प्रति आस्था को भी धर्म कहा जाता है। इसके अलावा धर्म की एक सरल परिभाषा है – ‘जो अधर्म ना हो, वही धर्म है’।

अंतत: सबसे उचित यही है कि अपने ज्ञान, अनुभव, बुद्धि व विवेक के अनुसार हमें धर्म की जो परिभाषा सबसे सही लगे उसे मानकर हमें धर्म का अनुपालन करने का प्रयास करना चाहिए।

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