जैन कवि बनारसीदास का जीवन परिचय | Banarasi Das Biography in Hindi

जैन कवि बनारसीदास का जीवन परिचय,आत्मकथा, काव्य रचना, मृत्यु
Banarasi Das Biography, Life, Story, Age, Poem, Death In Hindi

कवि बनारसीदास मुगलकाल के महान कवि रहे है. बनारसीदास एक जौनपुरी लेखक, कवि, दार्शनिक और व्यापारी थे, जो आगरा में निवास करते थे. वे अपनी काव्यात्मक आत्मकथा ‘अर्धकथानक’ के लिये जाने जाते हैं. उनके द्वारा रचित यह आत्मकथा पहली भारतीय भाषा मे लिखी गई आत्मकथा है, जो 17वीं शताब्दी में पूरे उत्तर भारत में बहुत लोकप्रिय हुई. इस आत्मकथा को लिखने का उनका एक ही मकसद था कि वे अपनी कहानी सबको बताएं. उन्होंने अपने समस्त काव्यों की रचना ब्रजभाषा में की.

जैन कवि बनारसीदास का जीवन परिचय | Banarasi Das Biography in Hindi

जैन कवि बनारसीदास का जन्म 1587 ई. में जौनपुर के एक श्रीमाल जैन परिवार में हुआ. उनके पिता खरगसेन जौनपुर में जौहरी थे. व्यापारी और वैश्य परिवार से होने के कारण उन्होंने बचपन से ही व्यापार में पारंगत किया जाने लगा. उस समय उन्होंने एक ब्राह्मण से अक्षरों एवं अंको की प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की. इसके बाद 14 वर्ष की आयु में दूसरे ब्राह्मण देवदत्त से ज्योतिष विद्या और गणित की शिक्षा प्राप्त की. इस समय उन्होंने ‘नाममाला’ जैसे समसामयिक ग्रंथों का अध्ययन किया. इसके साथ ही उन्होंने अलंकार, काव्य अलंकरण की तकनीक का भी अध्ययन किया. अपनी समस्त शिक्षा पूर्ण करने के बाद वे 1610 ई. में व्यापार के लिये जौनपुर से आगरा आ गए.

बिंदु (Points)जानकारी (Information)
नाम (Name)बनारसीदास
जन्म (Date of Birth)1587 ईस्वी
आयु56 वर्ष
जन्म स्थान (Birth Place)जौनपुर, उत्तरप्रदेश
पिता का नाम (Father Name)खरगसेन श्रीमाल जैन
माता का नाम (Mother Name)ज्ञात नहीं
पत्नी का नाम (Wife Name)ज्ञात नहीं
पेशा (Occupation )व्यापारी एवं कवि
बच्चे (Children)ज्ञात नहीं
मृत्यु (Death)1643 ईस्वी
मृत्यु स्थान (Death Place)ज्ञात नहीं
भाई-बहन (Siblings)ज्ञात नहीं
अवार्ड (Award) विशिष्ट सेवा पदक

बनारसीदास की आत्मकथा

महान कवि बनारसीदास ने 1641 ई. में अपनी आत्मकथा “अर्धकथानक” ब्रजभाषा मे काव्य रूप में लिखी. जो 17वीं शताब्दी में पूरे उत्तर भारत में बहुत लोकप्रिय हुई. यह आत्मकथा भारतीय भाषा मे लिखी गई पहली आत्मकथा है. मध्यकाल तक किसी भी लेखक या कवि ने अपने बारे में नहीं लिखा था किंतु ऐसा पहली बार हुआ जब बनारसीदास द्वारा अपनी आधी जिंदगी की पूरी कहानी को पुस्तक के रूप में वर्णित किया गया. उस समय उनकी उम्र 55 साल थी और जैन धर्म मे 110 साल का पूर्ण जीवनकाल माना जाता है, इसलिए बनारसीदास ने अपनी आत्मकथा को ‘अर्धकथानक’ अर्थात आधे जीवन की कहानी नाम दिया. यह आत्मकथा उनके जीवन को पारदर्शिता और स्पष्टता के साथ प्रकट करती है तथा मानव अस्तित्व की प्रकृति पर विचार करने के लिए प्रेरित करती है. इस आत्मकथा में एक बात आश्चर्यजनक है कि पुस्तक का लहजा मध्ययुग की तरफ ना होकर काफी अधिक आधुनिक है. इस पुस्तक के माध्यम से उनके जीवन के उतार-चढ़ाव तथा बौद्धिक और आध्यात्मिक संघर्षों को जाना जा सकता है. बनारसीदास की इस पुस्तक का हिंदी अनुवाद रोहिणी चौधरी द्वारा किया गया है.

बनारसीदास की काव्य रचना | Banarasi Das Poem

कवि बनारसीदास ने बचपन में काव्य , अलंकार आदि का ज्ञान प्राप्त किया था. जिसके कारण उनकी रुचि काव्य में अधिक थी. कवि बनारसीदास ने अपनी पहली काव्य रचना ‘कुतुबन की मिरिगावती’ के रूप में की. वे एक व्यापारी से कई गुना बेहतर एक कवि थे. उन्होंने ‘मंझन की मधुमालती’ काव्य की रचना की जो लोकप्रिय हुआ. इसके बाद उन्होंने बहुत से काव्यों की रचना की जिनमे “मोह विवेक नवधा” , “बनारसी नाममाला” (1613) , “बनारसीविल्लसा” (1644), “समासरा नाटक” (1636) और “अर्धकथनका” (1641). उन्होंने संस्कृत के  “कल्याणमन्दिर स्तोत्र” का अनुवाद भी किया. दिगम्बर जैन धर्म से जुड़ाव के कारण आध्यात्म से प्रभावित होकर बनारसीदास ने 1693 में समयसार जी को ‘नाटक समयसार’ के रूप में सुन्दर पद्यों में आबद्ध किया.

बनारसीदास के प्रसिद्ध काव्य नाटकसमयसारकी कुछ पंक्तियां

बहुविधि क्रिया क्लेश सौं,
शिवपद लहै न कोइ.
ग्यान कला परकाशसौ,
सहज मोखपद होइ..
ग्यानकला घट-घट बसै,
जोग जुगति के पार.
निज निज कला उद्योत करि,
मुकत होइ संसार..
भेदग्यान साबू भयौ, समरस निर्मल नीर.
धोबी अंतरात्मा, धोवै निजगुण चीर..
भेदग्यान संवर जिन पायौ.
सो चेतन शिवरूप कहायौ..
भेदग्यान जिनके घट नाहीं.
ते जड़ जीव बंधै घट मांहीं..

मृत्यु : Banarasi Das Death

कवि बनारसीदास की मृत्यु 1643 ई.  में हुई. उनकी मृत्यु के बारे में कहा जाता है कि मृत्यु के समय उनका गला रुंध गया था वे बोल नही पा रहे थे. तब वे समझ गए थे कि अंतिम समय आ गया है इस कारण वे ध्यान में चले गए लेकिन जब 2-3 घन्टे बाद भी उनके प्राण नही निकले तब लोग कहने लगे कि शायद कवि के प्राण परिवारीजनों के मोह में फँसे हुये है, कोई कहने लगा धन मे अटके हुए है. तब बोल ना पाने के कारण उन्होंने अपनी लेखनी से एक अंतिम छंद लिखा और मृत्यु को प्राप्त हुए.

अंतिम छंद

ज्ञान कुतक्का हाथ मारि अरि मोहना.

प्रगट्यो रूप स्वरूप अनंत जु सोहना..

जा परजै को अंत सत्य कर मानना.

चलै बनारसि दास फेर नहिं आवना..

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