मेजर जनरल जी डी बक्शी का जीवन परिचय | Major General G D Bakshi Biography in Hindi

मेजर जनरल जी डी बक्शी का जीवन परिचय, परिवार (पिता, पत्नी और बच्चे) और करियर
Major General G D Bakshi Biography, Family (Father, Wife, Children), Career, awards, Facts in Hindi

मेजर जनरल गगनदीप बक्शी या जी डी बक्शी एक सेवानिवृत्त(रिटायर्ड) भारतीय सेना अधिकारी हैं, जोभारत की सबसे प्रसिद्ध सोचने और बोलने वाले सैन्य सैनिक हैं, जो निश्चित रूप से पुनरुत्थानवादी राष्ट्रवादियों में सबसे लोकप्रिय हैं. उन्होंने जम्मू और कश्मीर राइफल्स में सेवा की. उन्हें भारतीय सेना में विशिष्ट सेवा के लिए कई पदक से सम्मानित किया गया है.

Major General G D Bakshi Biography in Hindi

मेजर जनरल जी डी बक्शी का जीवन परिचय | Major General G D Bakshi Biography in Hindi

जी.डी. बक्शी जी का जन्म 1950 में जबलपुर, मध्य प्रदेश में हुआ था. बक्शी साहब बचपन से ही भारतीय सेना में सेवा करने की इच्छा जताते थे. इनके भाई कैप्टन रमन बक्शी भी सेना में कार्यरत थे, जो 1965 में 23 वर्ष की आयु में भारत-पाक युद्ध में शहीद हो गए थे, जो इस जंग के पहले शहीद थे. बक्शी साहब के भाई के सम्मान में, जबलपुर की एक सड़क का नाम उनके भाई के नाम पर रखा गया, जिसे अब लोग ‘रमन बक्शी मार्ग’ के नाम से जानते है.

बिंदु (Points)जानकारी (Information)
नाम (Name)अल्बर्ट आइंस्टीन
जन्म (Date of Birth)14 मार्च 1879
आयु76 वर्ष
जन्म स्थान (Birth Place)उल्म, जर्मनी
पिता का नाम (Father Name)हरमन आइंस्टीन
माता का नाम (Mother Name)पॉलीन कोच
पत्नी का नाम (Wife Name)मिलेवा मारिक (1903-1919)
एल्सा लोवेंथल (1919-1936)
पेशा (Occupation )वैज्ञानिक, भौतिक विज्ञानी
बच्चे (Children)2 बेटे
मृत्यु (Death)18 अप्रैल 1955
मृत्यु स्थान (Death Place)न्यू जर्सी, संयुक्त राज्य अमेरिका
भाई-बहन (Siblings)एक बहन
अवार्ड (Award)नोबेल पुरस्कार

बक्शी साहब ने अपनी शुरूआती शिक्षा जबलपुर के सेंट अलॉयसियस सीनियर सेकेंडरी स्कूल से पूरी की. उसके बाद उच्च शिक्षा के लिए, वह राष्ट्रीय रक्षा अकादमी और भारतीय सैन्य अकादमी में शामिल हो गए जहाँ से उन्होंने स्नातक की पढ़ाई पूरी की. इनका परिवार इन्हें IAS बनाना था, लेकिन युवा गगनदीप की कुछ और ही इच्छा थी, उन्होंने चुपचाप राष्ट्रीय रक्षा अकादमी के लिए फार्म भरा और ऑल इंडिया मेरिट लिस्ट में दूसरे स्थान पर आ गए.

जी.डी. बक्शी का आर्मी करियर | Major G D Bakshi Army Career

बक्शी साहब जून 1967 में वायु सेना के कैडेट के रूप में शामिल हुए, लेकिन जब उन्हें ये पता चला कि, उनके सेना में नहीं जाने के कारण, एक संपूर्ण पायलट के रूप में फाइटर पायलट में स्नातक करने की अनुमति नहीं है तब, वह 1971 में भारतीय सैन्य अकादमी शामिल हो गये, उस वक्त भारत पर युद्ध के बादल मंडरा रहे थे. बक्शी साहब का प्रशिक्षण एक महीने पहले समाप्त हुआ था और कैडेटों को सिलीगुड़ी भेज दिया गया. बक्शी जी को 6 जम्मू और कश्मीर राइफल्स में कमीशन किया गया था और चीन के मोर्चे पर भेजा गया था, जहाँ मुक्ति बाहिनी के साथ तैनात होने से पहले हमले की आशंका थी.

Major General G D Bakshi Biography in Hindi
Major General G D Bakshi Biography in Hindi

पंद्रह साल बाद, पंजाब (1985-87) में एक पोस्टिंग के दौरान, उन्होंने सिख आतंकवादियों से लड़ने के लिए सिख सैनिकों को कमान सौंपते हुए घरेलू आतंकवाद के खिलाफ अपना पहला प्रदर्शन किया. यह एक बहुत नाजुक स्थिति थी, लेकिन बक्शी ने अपने सेनिको से स्पष्ट रूप से कहा कि पाकिस्तान हमारे समुदाय का उपयोग अपने नापाक मंसूबों के लिए कर रहा है और हम इसे कामयाब नही होने देंगे, और इस तरह बख्सी जी ने सेनिको की वफादारी और समर्थन को जीता. उन्होंने पंजाब में आतंकवादी गतिविधियों का मुकाबला करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.

1999 के कारगिल युद्ध में भी, जी डी बक्शी ने बटालियन की कमान संभाली और सफलतापूर्वक पाकिस्तान के खिलाफ ऑपरेशन का नेतृत्व किया. उनकी प्रतिभा को पहचाना गया, उन्हें जल्द ही सैन्य संचालन निर्देशालय में नियुक्त किया गया, जो सभी सैन्य अभियानों के लिए सर्वोच्च योजना स्थान था और जिसकी देखरेख सीधे सेना प्रमुख और उप-प्रमुख करते थे.

वह किस्सा जो किसीने नहीं सुना

सैन्य संचालन निर्देशालय से बक्शी साहब ने श्रीलंका में इंडियन पीस कीपिंग फोर्स ऑपरेशन की योजना बनाई. जब एक बटालियन ने बहुत से सेनिको को खो दिया, तो रेजिमेंट के एक कर्नल ने सलाह दी कि हार को दूर करने का एकमात्र तरीका था कि, हम मुकाबले अच्छा करते, ये बात बक्शी को बहुत चुभी.

एक बार फिर जम्मू-कश्मीर में ऐसी ही समस्याएँ सामने आईं, इस बार बक्शी साहब ने खुद को सियाचिन भेजे जाने के लिए कहा. 1987 में अब एक लेफ्टिनेंट कर्नल के तौर पर, उन्होंने कुछ स्वयंसेवकों को LOC से पांच किलोमीटर दूर कारगिल के काकसर में तैनात किया, जहां बड़े पैमाने पर घुसपैठ हुई थी, लेकिन इसकी जानकारी बहार नही आई थी.

पाकिस्तानियों के ऊंचाई पर होने की वजह से उन्हें बहुत फायदा मिल रहा था और सेना को उनसे लड़ने में खूब परेशानी हो रही थी. भारतीय यूनिट 6 जम्मू और कश्मीर राइफल्स से पहले तैनात थी, ये झड़प कुछ ग्यारह महीने तक चली और बक्शी साहब ने देखा कि इसमें हमारे 48 सैनिक मारे गए और 100 से अधिक घायल हो गए.

Major General G D Bakshi Biography in Hindi
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बक्शी की यूनिट ने इसी तरह अपना दो साल का पूरा कार्यकाल पूरा किया. यह एक ऐसी अविश्वसनीय रूप से कठिन पोस्टिंग थी, जहां उन्हें केवल चांदनी रातों में आपूर्ति की जा सकती थी और वह दिन में एक इंच भी आगे नहीं बढ़ सकते थे. यहाँ पर आप सैनिकों के मनोबल की कल्पना कर सकते है कि वह कितना दृढ़ था.

विरोधियो को जवाब देने के लिए बत्तख बैठे रहना के बजाय, बक्शी ने नए जनरल ऑफिसर कमांडिंग जनरल ओपी कौशिक और कॉर्प्स कमांडर ज़ाकि को कार्रवाई करने के लिए राजी किया. उन्होंने अपनी खुद की आपूर्ति लाइन ज़ोजिला पास से गुजरते हुए बुर्जुल पास को बंद करके पाकिस्तानी पक्ष की आपूर्ति बंद करने का निर्णय लिया. फिर उन्होंने एक आर्टिलरी रेजिमेंट कोआगे बढ़ाया और 105 मिमी बंदूकें, 120 मिमी भारी मोर्टार, 81 मिमी मोर्टार, रॉकेट लेकर इतने असले के साथ पाकिस्तानियों को खदेड़ दिया. बाद में खुफिया रिपोर्टों से पता चला कि इस हमले में 45 पाकिस्तानी मारे गये और 145 पाकिस्तानी घायल हो गये. भारत ने भी 6 सैनिक खो दिए और 21 घायल हो गए. भारतीय सेनिको की गोलीबारी इतनी तेज थी कि 29 बलूच से सफेद झंडा फहराया गया और पाकिस्तान जनरल हेडक्वार्टर ने युद्ध विराम के लिए कहा.

बक्शी साहब को एक विशिष्ट सेवा पदक मिला, लेकिन अगली रैंक से इनकार कर दिया गया क्योंकि नई दिल्ली में शांति वार्ता को प्राथमिकता दी गई थी.

जी डी बक्शी की निजी ज़िन्दगी | Major G D Bakshi Personal Life

जी डी बक्शी के पिता, एसपी बक्शी, जम्मू और कश्मीर राज्य बलों (6 जम्मू और कश्मीर राइफल्स) के मुख्य शिक्षा अधिकारी और तत्कालीन युवराज करण सिंह के निजी ट्यूटर थे. जब राज्य की सेनाओं को भारतीय सेना में मिला दिया गया, तो उन्हें कोर ऑफ़ सिग्नलों में भेज दिया गया, जहाँ से वे सेवानिवृत्त हुए. उनका बड़ा बेटा सृष्टि रमन बक्शी 1963 में 6 जम्मू और कश्मीर राइफल्स में शामिल हो गया, और 23 साल की युवा उम्र में 1965 के युद्ध (24 सितंबर 1965) में हुए एक ब्लास्ट में वह शहीद हो गया.

जी.डी. बक्शी को मिले सम्मान | Major G D Bakshi Awards

  • कारगिल युद्ध में बटालियन की कमान संभालने के लिए विशिष्ट सेवा पदक
  • किश्तावर के बीहड़ पहाड़ों में आतंकवाद-रोधी अभियानों के लिए सेना पदक

जी.डी. बक्शी साहब के अनसुने किस्से | Unknown Fact of Major G D Bakshi

  • बक्शी एक लेखक भी हैं. उन्होंने सैन्य मामलों पर कई किताबें लिखी हैं. उन्होंने लगभग 24 पुस्तकें और 100 से अधिक पत्र लोकप्रिय पत्रिकाओं में लिखे हैं.
  • वह भारतीय सैन्य अकादमी, देहरादून में शिक्षक भी रहे हैं.
  • बक्शी न्यूजीलैंड के वेलिंगटन के प्रतिष्ठित रक्षा सेवा स्टाफ कॉलेज में शिक्षक भी रहे हैं.
  • उन्होंने 2008 में सेवानिवृत्त होने से पहले दो साल के लिए राष्ट्रीय रक्षा कॉलेज, दिल्ली में भी पढ़ाया है.
  • बक्शी साहब को पढ़ना, काम करना, योग करने का भी शोक है.
  • उनकी नवीनतम पुस्तक, ‘बोस: एन इंडियन समुराई’ 2016 में प्रकाशित हुई थी.

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