सुमित्रा देवी का जीवन परिचय | Sumitra Devi Biography in Hindi

सुमित्रा देवी की जीवनी | Sumitra Devi Biography [Birth, Films, Career, Personal life and Awards]

आज पूरी दुनिया में बॉलीवुड सबसे ज्यादा फ़िल्में बनाने में अव्वल दर्जे पर हैं. बॉलीवुड ने कई प्रतिभाशाली कलाकारों को जन्म दिया हैं. इसी कड़ी में आज हम बात करेंगे 1940-50 के दशक की एक अदाकारा की जिसकी खूबसूरती की मिसाल आज भी दी जाती हैं.

सुमित्रा देवी का जन्म और परिवार(Sumitra Devi Biography)

सुमित्रा देवी का जन्म 1923 में पश्चिम बंगाल के बीरभूम के शियारी में हुआ था. उनका मूल नाम नीलिमा चट्टोपाध्याय था. उनके पिता मुरली चट्टोपाध्याय एक वकील थे. उनके भाई का नाम रणजीत चट्टोपाध्याय था. इनकी परवरिश बिहार के मुजफ्फरपुर में हुई लेकिन मुजफ्फरपुर में आये भूकंप के कारण उनका घर और सम्पति नष्ट हो गई, जिस वजह से इन्हें बिहार छोड़कर कोलकत्ता जाना पड़ा.

इनके पति का नाम देवी मुखर्जी है जो कि एक अभिनेता थे. इनकी शादी 21 अक्टूबर 1946 को हुई थी.

1 दिसम्बर 1947 को इन्होंने एक बेटे को जन्म दिया, जिसका नाम बुलबुल है. बेटे के जन्म के 10 दिन बाद ही इनकी जिंदगी का सबसे बुरा दिन आया, जब इनके पति का 11 दिसम्बर 1947 को देहांत हो गया.

सिनेमाजगत में प्रवेश (Sumitra Devi Film Debut)

अपनी किशोरावस्था के दौरान, वह चंद्रबती देवी और कानन देवी जैसे अनुभवी अभिनेत्रीयों की सुंदरता और कद से काफी प्रभावित थीं. इनको आदर्श मानकर इन्ही की तरह एक अभिनेत्री बनने की इच्छा रखती थी. उन्होंने न्यू थिएटर के कार्यालय में अपनी तस्वीर के साथ एक आवेदन पत्र भेजने का फैसला किया. उनके पिता रूढ़िवादी थे इसलिए चुपचाप ऐसा करने और अपनी योजना को फलदायी बनाने का फैसला किया. उन्होंने अपने छोटे भाई रणजीत की मदद मांगी जो उनके साथ सहयोग करने के लिए सहमत हुए.

न्यू थिएटर के कार्यालय में, उन्हें एक साक्षात्कार और परीक्षण के लिए बुलाया गया. वहाँ उन्हें एक लेख पढ़ने के लिए कहा गया. उन्होंने अपनी सुंदरता के साथ-साथ सुन्दर, उदार आवाज से उपस्थित सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया. उन्हें न्यू थिएटर के मेरी बहेन (1944) में के.एल. सहगल के सामने प्रमुख भूमिका के लिए चुना गया.

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करियर(Sumitra Devi Career)

नीलिमा ने अपना स्क्रीन नाम सुमित्रा देवी अपनाया.’मेरी बहेन’ सुमित्रा देवी की पहली फिल्म होने वाली थीं, लेकिन आखिरकार उन्होंने अपूर्व मित्र की बंगाली फिल्म ‘संधि’ (1944) के साथ अपने फिल्मी सफर की शुरुआत की जो कि बॉक्स ऑफिस पर एक बड़ी हिट बन गई.

फिल्म रिलीज होने के बाद, उनके अभिनय कौशल की सराहना की गई और उन्हें “बंगाल फिल्म जर्नलिस्ट एसोसिएशन – बेस्ट एक्ट्रेस अवार्ड” दिया गया.

मेरी बहेन (1944) ने रिलीज पर उल्लेखनीय सफलता हासिल की. यह साल की सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्म बन गई. तब वह सौमेन मुखोपाध्याय की हिंदी फिल्म वसुयतनाम (1945) में दिखाई दीं, जो मूल रूप से अनुभवी बंगाली लेखक बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय के प्रसिद्ध उपन्यास ‘कृष्णकन्टर विल’ पर आधारित थी. इस फिल्म में, उन्होंने एक खूबसूरत विधवा का किरदार निभाया जो पुरुष नायक को रिझाती है और आखिर में उसके द्वारा मारा जाता है. इस फ़िल्म के समीक्षकों ने इनकी लुभावनी और डरावनी एक्टिंग के लिए इन्हें खूब सराहा.

उनकी अगली बड़ी फ़िल्म सतीश दासगुप्ता और दिगंबर चट्टोपाध्याय के निर्देशक के साथ venture Pather Dabi (1947) थी. इस फिल्म बॉक्स ऑफिस पर बड़ी सफलता हासिल की थी क्योंकि यह फ़िल्म समकालीन भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के विभिन्न पहलुओं को समाए हुए थी. उन्होंने फिल्म में उनके प्रदर्शन के लिए आलोचकों से सकारात्मक समीक्षा प्राप्त की. सुशील मजूमदार की ‘अभिजीत'(1947) में मुखर्जी के साथ उन्हें फिर से जोड़ा गया, जो बॉक्स ऑफिस पर एक और बड़ी सफलता बन गई.

उनकी अगली फ़िल्म हेमचंद्र की bilingual venture Oonch Neech (1948) थी, जिनका बंगाली संस्करण ‘प्रतिबद’ शीर्षक के तहत जारी किया गया था. इस फिल्म ने राष्ट्रीय और क्षेत्रीय मोर्चे पर एक बड़ी व्यावसायिक सफलता हासिल की.

1950 में, वह नितिन बोस की हिंदी फिल्म माशाल में दिखाई दीं, जो अनुभवी लेखक बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय के प्रसिद्ध बंगाली उपन्यास रजनी पर आधारित है. उन्होंने तारांगिनी का किरदार निभाया जो समर के चरित्र से प्यार करती हैं, जो अशोक कुमार द्वारा निभाई जाती है. लेकिन अपने पिता द्वारा एक अमीर मकान मालिक से विवाह करने के लिए मजबूर किया जाता है. फिल्म ने महत्वपूर्ण व्यावसायिक सफलता हासिल की.

वर्ष 1952 में उनकी चार बॉलीवुड फ़िल्म दीवाना, घुघग्रो, ममता, राजा हरिश्चंद्र रिलीज हुई. दीवाना और घुघ्रू को बॉक्स ऑफिस पर उल्लेखनीय सफलता मिली. उनकी अन्य रिलीज मयूरपंठ (1954), चोर बाजार जगते रहो (1956) और दिल्ली दरबार (1956), कुछ नामों के लिए थीं.

1955 में, वह अर्धेंदु मुखोपाध्याय की बंगाली फिल्म “दस्यु मोहन” में दिखाई दीं, जो बॉक्स ऑफिस पर एक बड़ी हिट बन गईं.1956 में, वह पिनकी मुखोपाध्याय की बंगाली फिल्म ‘असबरना’ (1956) और कार्तिक चट्टोपाध्याय के ब्लॉकबस्टर साहेब बीबी गोलम (1956) में दिखाई दीं जो कि इसी नाम के बिमल मित्रा के क्लासिक उपन्यास का अनुकूलन है.

यादगार फ़िल्म(Sumitra Devi Films)

हर एक कलाकार के जीवन में एक फ़िल्म ऐसी जरूर होती है, जो उसके व्यक्तित्व से जुड़ जाती हैं. दादा गुंजल द्वारा निर्देशित 1952 की हिंदी फिल्म “ममता” में उनकी भूमिका के लिए इन्हें सबसे ज्यादा याद किया जाता है.

वह दो बार सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के लिए बीएफजेए अवॉर्ड प्राप्तकर्ता थीं. वह अपने समय की उत्तम सुंदरियों में से एक है,और उन्हें प्रदीप कुमार और उत्तम कुमार जैसे दिग्गजों द्वारा अपने समय की सबसे खूबसूरत महिला माना जाता है.

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