आदर्श विद्यार्थी पर निबंध | Essay on Adarsh Vidyarthi in Hindi

आदर्श विद्यार्थी जीवन पर हिंदी में निबंध | Essay on Adarsh Vidyarthi (Ideal Student) in Hindi | Adarsh Vidyarthi Par Nibandh Lekhan

संस्कृत की एक सूक्ति है “सुखार्थी वा त्यंजेत विदधाम, विद्धार्थी वा त्यंजेत सुखम” अर्थात यदि तुम विद्यार्थी विद्या के इच्छुक बनना चाहते हो तो सुख छोड़ देना चाहिए और यदि सुख चाहते हो तो विद्या छोड़ दो. सुक्तिकार ने विद्यार्थी को कितनी अच्छी शिक्षा दी जाए विद्यार्थी को एकाग्र मन होकर अध्ययन की ओर ही ध्यान देना चाहिए. संसार में जितने भी सुख है उनकी ओर ध्यान नहीं देना चाहिए.

आज हम देखते हैं कि माता-पिता अपने बच्चों की सुख सुविधा जुटाने में व्यस्त रहते हैं उनका विचार है कि बच्चे को सभी सुख सुविधाएँ प्राप्त होगी तो वह पढ़ाई लिखाई मन लगाकर करेगा. माता-पिता की धारणा विद्यार्थी जीवन के बिल्कुल विपरीत है. विद्या सुख सुविधा प्रदान करने से नहीं बल्कि कष्ट सहन करने के अभ्यास से आती है.

सोने के लिए अच्छे से अच्छा प्रबंध करना विद्यार्थी जीवन में नितांत विपरीत है. विद्यार्थी को तो जाग्रत रखने का प्रबंध करना चाहिए इसी प्रकार संपूर्ण सुख सुविधाएं विद्या प्राप्ति की विरोधी है.

एक अच्छा आदर्श विद्यार्थी (Adarsh Vidyarthi) जीवन वही है जो भौतिक सुखो की और जरा भी ध्यान ना दें क्योंकि यह भौतिक सुख उसे आलसी एवं निंद्रालू बनाकर उसका ध्यान विद्या अभ्यास से हटा देते हैं. एक आदर्श विद्यार्थी की चेष्टाएँ कौवे की तरह होनी चाहिए. जहां कहीं भी विद्या धन प्राप्ति का अवसर हो वह उस और अपना ध्यान आकृष्ट करें. कौवे की निगाह सर्वत्र दौड़ती रहती है उसी प्रकार विद्यार्थी भी सब ओर से ज्ञान प्राप्ति के लिए सतर्क रहे. ज्ञान मात्र पुस्तकों का कीड़ा बनने से नहीं अपितु सर्वत्र निगाहे दौड़ने से, सभी चीजों का अच्छी तरह निरिक्षण करने से व्यावहारिक ज्ञान की प्राप्ति होती है. अतः एक अच्छे विद्यार्थी की चेष्टाएं सर्वत्र गामिनी होनी चाहिए.

विद्यार्थी का ध्यान बगुले की तरह एकाग्र होना चाहिए जैसे बगुले का ध्यान इधर-उधर नहीं अपने शिकार मछली की और रहता है उसी प्रकार विद्यार्थी का ध्यान सब कुछ देखते हुए भी विद्या प्राप्ति पर केंद्रित होना चाहिए. हर समय सोते जागते खाते-पीते खेलते कूदते हुए भी उसको विद्या संग्रह की ओर प्रवृत होना चाहिए.

एक आदर्श विद्यार्थी को आलसी और प्रमादी नहीं होना चाहिए. खूब खाना और खूब सोना इन दोनों बातों से विद्यार्थी को बचना चाहिए नीतिकारों का तो कथन है कि विद्यार्थी की नींद कुत्ते की तरह होनी चाहिए जरा सी आहट होने पर ही उठ जाता है कम सोता है सोता भी है तो बहुत गहरी नींद में नहीं सोता उसी प्रकार एक अच्छा आदर्श विद्यार्थी (Adarsh Vidyarthi) भी जब लोग सोते हैं तो यह जागकर पढ़ता रहता है सोते हुए भी उसे जल्दी अपने अध्ययन के समय पर उठ जाना चाहिए यह सोने के लिए नहीं सोता अपितु अपनी विद्या अभ्यास की थकान मिटाने के लिए सोता है.

एक आदर्श विद्यार्थी को कम और सादा भोजन करना चाहिए नीतिकार का कथन है कि विद्यार्थी को अल्पाहारी होना चाहिए बहुत अधिक भोजन करने से नींद और आलस से बढ़ते हैं आलस्य और नींद दोनों ही विद्यार्थी के लिए विद्या अध्ययन में बाधक है. अतः एक आदर्श विद्यार्थी को अल्पाहारी होना चाहिए.

एक आदर्श विद्यार्थी घर के सुकून से विरक्त रहता है घर के सभी सुख विद्यार्थी जीवन के बाधक होते हैं इसलिए समझदार अभिभावक छात्रों को छात्रावास में रखते हैं. प्राचीन काल में गुरुकुल पद्धति भी इसलिए प्रचलित थी यहां तक कि राजा महाराजाओं के पुत्र भी गुरुकुल में पढ़ने आते थे विद्यार्थी की जो दिनचर्या होनी चाहिए. उस दिनचर्या के पालन में घर बाधक है नीतिकार कहते हैं कि एक अच्छे विद्यार्थी को घर को छोड़कर एकांत में जाकर विद्या अध्ययन करना चाहिए परंतु आज के युग में जबकि गुरुकुल प्रणाली समाप्त प्राय है गृहत्यागी का अर्थ किया जाता है घर के ऐशो आराम की परवाह न करने वाला. एक आदर्श विद्यार्थी (Adarsh Vidyarthi) को घर में रहते हुए भी जल में कमल की तरह घर के झंझट से निर्लिप्त होना चाहिए.

विद्या की प्राप्ति बहुत दुर्लभ है किसी दुर्लभ वस्तु की प्राप्ति के लिए बहुत प्रयास करने पड़ते हैं. उसी प्रकार विद्या प्राप्ति के लिए भी एक आदर्श विद्यार्थी को अपने को बहुत कड़े नियंत्रण, अनुशासन, आत्मानुशासन में रखना चाहिए.

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