रानी लक्ष्मीबाई के जीवन से जुडी जानकारी हिंदी में | Rani Lakshmi Bai Life Information in Hindi

Rani Lakshmi Bai Life Information in Hindi

रानी लक्ष्मीबाई का भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई में जुडी और वीरांगना हुई स्वतंत्रता सैनानियों में से एक थी. वह झाँसी राज्य की महारानी थी.

जन्म-समय का नाम (Rani Lakshmi Bai Birth Name)

मणिकर्णिका तांबे

उपनाम(Rani Lakshmi Bai Nick Name)

मनू, उनके चंचल व्यवहार के कारण उनका एक नाम “छबीली” भी पड़ गया था.

विवाह उपरान्त नाम (Rani Lakshmi Bai After Marriage Name)

लक्ष्मीबाई (देवीमाता लक्ष्मी के नाम पर)

जन्म (Rani Lakshmi Bai Birth Date)

19 नवंबर 1828,

वाराणसी कई इतिहासकार रानी लक्ष्मीबाई का जन्म वर्ष 1835 बताते थे. किन्तु अब इतिहासकारों ने इस 1835 के जन्म वर्ष को अस्वीकृत कर दिया है.

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मृत्यु (Rani Lakshmi Bai Date of Death)

18 जून 1858, 29 वर्ष की आयु में निधन मृत्यु-स्थल (अंतिम युद्ध-क्षेत्र) : कोटा की सराय, ग्वालियर के फूलबाग के पास. यहां लड़ते हुए वे बूरी तरह घायल हो गई थी, और अंत में एक संत की कुटिया में उनका अंतिम संस्कार किया गया था.

पिता (Rani Lakshmi Bai Father)

मोरोपन्त तांबे. मोरोपन्तजी बिथुर जिले के पेशवा के दरबार में कार्यरत थे.

माता (Rani Lakshmi Bai Mother)

भागीरथीबाई साप्रे

मोटे तौर पर, मराठा साम्राज्य के ‘छत्रपति’ की ‘उपाधि’ की तुलना भारत के ‘प्रधानमंत्री’ की ‘उपाधि’ से और ‘पेशवा’ की उपाधि की तुलना भारत के प्रदेशों के ‘मुख्यमंत्रियों’ की ‘उपाधि’ से की जा सकती है. मराठा साम्राज्य के संस्थापक वीर महाराज शिवाजी मराठा साम्राज्य के पहले ‘छत्रपति’ थे.

विवाह (Rani Lakshmi Bai Marriage)

1842 में झांसी के महाराज गंगाधर राव नेवालकर से 14 वर्ष की आयु में विवाह.

संतान (Rani Lakshmi Bai Childrens)

रानी लक्ष्मीबाई के पुत्र दामोदर राव की 4 माह की आयु में मृत्यु हो गई थी. इसके बाद गंगाधर राव के चचरे भाई के पुत्र आनंद राव को राजा-रानी ने गोद ले लिया था. गोद लेने के पश्चात राजा-रानी ने अपने दत्तक पुत्र का नाम आनंद राव से बदलकर दामोदर राव रख लिया था.

‘ब्रिटिश जनरल ह्यूरोज’ ने ‘कोटी की सराय’ युद्ध की रिपोर्ट में लिखा था- “रानी लक्ष्मीबाई अपनी सुन्दरता, चालाकी और दृढ़ता के लिए तो उल्लेखनीय थी ही, साथ ही वे विद्रोही नेताओं में सबसे अधिक खतरनाक भी थी.”

रानी लक्ष्मीबाई की मृत्यु के 20 वर्षो के बाद, एक ब्रिटिश सैन्य अधिकारी ‘कर्नल माल्सन’ ने अपनी किताब ‘हिस्ट्री ऑफ़ द इंडियन म्युटिनी, वॉल्यूम 3, 1878’ में रानी लक्ष्मीबाई के बारे में लिखा था- “अंग्रेज़ो की दृष्टी में रानी लक्ष्मीबाई की जो भी गलतियां हो, किन्तु उनके देशवासी यह सदैव याद रखेंगे की वे क्रांति की रणभूमि में अपने देश के साथ हो रहे दुर्रव्यवहार के कारण उतरी थी, और यह की रानी लक्ष्मीबाई ने अपने देश के लिए ही जीवन जिया और अपने देश के लिए ही प्राणों की आहुति दे दी.”

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