आचार्य हरिहर का जीवन परिचय | Acharya Harihar Biography in Hindi

आचार्य हरिहर की जीवनी(जन्म, शिक्षा और जीवन संघर्ष) | Acharya Harihar Biography (Birth, Education, Life History) in Hindi

आचार्य हरिहर का जीवन परिचय (Acharya Harihar Biography)

आचार्य हरिहर का जन्म वर्ष 1879 में फाल्गुन मास की पूर्णिमा के दिन पूरी जिले के श्रीरामचंद्रपुर गांव में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था. इनके पिता का नाम महादेव ब्रह्मा तथा माता का नाम श्रद्धादेवी था. इन्होने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अपने गाँव में ही पूरी की. जिसके बाद इन्होने आगे की शिक्षा पुरी जिले से पूरी की. बचपन से आचार्य हरिहर जन कल्याण और मानव सेवा की ओर समर्पित थे.

इन्होने उड़ीसा में एक सामाजिक सेवा की आधारशीला रखी थी और इन्होने गरीब और जरुरतमंदो के लिए युवा छात्रों को संगठित करने का भी कार्य किया. इन्होने अपनी शिक्षा में अपना एफ.ए रवेंशाव कॉलेज (Ravenshaw college)से पूर्ण किया. जिसके बाद वे एल.एल.बी करने के लिए कोलकाता गए. लेकिन वे वहाँ से लौट आये क्योंकि कानून की पढाई में उनका मन नहीं लग रहा था.

जिसके बाद आचार्य हरिहर ने पूरी के जिला स्कूल के विद्यालय में शिक्षक के रूप में काम किया. फिर इन्होने नेलागिरी गड्जत स्कूल में भी शिक्षक के दायित्व का निर्वहन किया. वर्ष 1912 में वे बकुला बाना विद्यालय के शिक्षक बने. आचार्य हरिहर विद्यालय में सबसे पसंदीदा शिक्षक थे. वे छात्रों के बीच आचार्य के नाम से प्रसिद्ध थे.

आचार्य हरिहर ने एक विधवा आश्रम की स्थापना की. जहाँ उन्होंने बच्चों को शिक्षा देने की जिम्मेदारी दी. और पूरे उड़ीसा में स्वतंत्रता संग्राम के सन्देश को फ़ैलाने का कार्य किया.

वर्ष 1921 से 1924 तक इन्हें स्वराज संघर्ष के कारण जेल में रखा गया. जिसके बाद इन्होने केंद्ररा सम्मेलन में अध्यक्षता की. वर्ष 1930 में इन्हें नमक सत्याग्रह के दौरान जेल जाना पड़ा. जिसके बाद इन्होने वर्ष 1942 में बनारा सेना का गठन किया. इस संगठन में कई बच्चे सदस्य थे. इस सेना ने भारत छोडो आन्दोलन में सक्रिय भूमिका निभाई थी. वर्ष 1946 में हजारीबाग जेल में अपनी सजा के दौरान इन्होने श्रीमद भागवत गीता का अनुवाद उडिया भाषा ने किया.

प्यारीमोहन कादमी में सेवा करते समय, उन्होंने एक अंग्रेजी व्याकरण पुस्तक बनाई थी. जिसका नाम चाइल्ड इजी फर्स्ट ग्रामर (child’s easy first Grammar) जो आज भी प्रासंगिक हैं. वे महात्मा गाँधी से भी काफी प्रभावित थे. इन्होने अपना जीवन आश्रम और खादी केंद्र की सेवा में समर्पित किया. 21 फरवरी 1971 में 96 वर्ष की उम्र में इन्होने अंतिम सांस ली.

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