सत्यजीत रे का जीवन परिचय | Satyajit Ray Biography in Hindi

सत्यजीत रे का जीवन परिचय
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फिल्मों और लेखन के माध्यम से देश की सच्ची और मार्मिक तस्वीर प्रस्तुत करने वाले सत्यजित  एक विश्व विख्यात फिल्म निर्माता थे. विश्व सिनेमा के पितामह माने जाने वाले महान निर्देशक अकीरा कुरोसावा ने राय के लिए कहा था ‘सत्यजित राय के बिना सिनेमा जगत वैसा ही है जैसे सूरज-चाँद के बिना आसमान’. उन्होंने अपने जीवन में कुल 29 फिल्में और 10 डाक्यूमेंट्री बनाई थी. सत्यजीत रे की “पाथेर पांचाली” यह फिल्म आदर्श फिल्म मानी जाती है. 32 राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों के विजेता सत्यजीत रे ने भारतीय सिनेमा को दुनिया में पहचान दिलाई. आइये इस महान हस्ती की जीवनी को समज़ते है. 

Satyajit Ray Biography in Hindi

सत्यजीत रे का जीवन परिचय | Satyajit Ray Biography in Hindi

बिंदु (Points)जानकारी (Information)
नाम (Name)सत्यजीत रे
जन्म (Date of Birth)2 मई 1921
आयु71 वर्ष
जन्म स्थान (Birth Place)कोलकाता, पश्चिम बंगाल
पिता का नाम (Father Name)सुकुमार रे
माता का नाम (Mother Name)सुप्रभा रे
पत्नी का नाम (Wife Name)ज्ञात नहीं
पेशा (Occupation )फिल्म निर्माता
बच्चे (Children)ज्ञात नहीं
मृत्यु (Death)23/04/1992
मृत्यु स्थान (Death Place)कोलकाता
भाई-बहन (Siblings)कोई नहीं
अवार्ड (Award)राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार

जन्म और प्रारंभिक जीवन ( Birth & Early Life )

सत्यजीत रे का जन्म 2 मई 1921 को पश्चिम बंगाल के कोलकाता में हुआ. वे उनके माता – पिता की इकलौती संतान थे. वे सिर्फ 3 साल के थे जब उनके पिताजी सुकुमार रे निधन हो गया. इस घटना के बाद उनकी माता सुप्रभा रे ने उनका बड़ी मुश्किल से पालन पोषण किया था. उनकी माँ रवींद्र संगीत की मंजी हुई गायिका थी. उनके दादाजी ‘उपेन्द्रकिशोर रे’ एक लेखक एवं चित्रकार थे और इनके पिताजी भी बांग्ला में बच्चों के लिए रोचक कविताएँ लिखते थे. 

स्कूली शिक्षा ख़त्म होने के बाद उन्होंने प्रेसीडेंसी कॉलेज से अर्थशास्त्र की पढाई की. और फिर आगे की पढाई के लिए शांति निकेतन गए. लेकिन इनकी रुचि हमेशा से ही ललित कलाओं में रही. शांति निकेतन में रे पूर्वी कलाओं से बहुत प्रभावित थे. उन्होंने प्रसिद्ध चित्रकार नंदलाल बोस और बिनोद बिहारी मुखर्जी से कला के पाठ लिए. अगले पांच साल शांति निकेतन में रहने के बाद वे 1943 में फिर कलकत्ता आ गए और बतौर ग्राफिक डिजाइनर का काम करने लगे. इनके पद का नाम “लघु द्रष्टा” था और महीने के केवल अस्सी रुपये का वेतन था. जिम कॉर्बेट की ‘मैन ईटर्स ऑफ कुमाऊं’ और जवाहरलाल नेहरू की ‘डिस्कवरी ऑफ इंडिया’ के आवरण भी सत्यजीत रे ने ही डिजाइन किये थे. राय ने दो नए फॉन्ट भी बनाए  “राय रोमन” और “राय बिज़ार”.  राय रोमन को 1970 में एक अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता में पुरस्कार मिला. 

जीवन सफ़र ( Satyajit Ray Career Story)

1949 में सत्यजीत रे की मुलाकात फ्रांसीसी निर्देशक जां रेनोआ से हुई. वे उस वक्त अपनी फिल्म द रिवर की शूटिंग के लिए लोकेशन की तलाश में कलकत्ता आए थे. सत्यजीत रे ने रेनोआ की मदद की थी. उनके साथ समय बिताके रेनोआ को एहसास हो गया था की रे में  फिल्मकार बनने की भी प्रतिभा है. उन्होंने अपने मन की बात रे से कही भी थी. 

उन्होंने कलकत्ता की एक विज्ञापन कंपनी के लिए कुछ दिनों तक काम किया था. इसी दौरान उनके काम से खुश होकर कंपनी ने उन्हें 1950 में यूरोप के टूर का पुरस्कार दिलाया. फिल्में देखना और फिल्मों के बारे में जानना उन्हें बेहद पसंद था. इसलिए उन्होंने लन्दन फिल्म क्लब की सदस्यता ले ली और फिल्में देखने लगे. लंदन में उन्होंने ‘बाइसिकल थीब्स’ और ‘लूसिनिया स्टोरी एंड अर्थ’ ने उन्हें बहुत प्रभावित किया और उन्हें इससे फिल्मों की ताकत का एहसास हुआ ज्यां रिनोर की ‘द रिवर’ देख कर तो वह इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने फिल्मकार बनने का निश्चय कर लिया. 

अक्टूबर 1952 में सत्यजित रे ने फिल्म बनाने का निर्णय लिया. पैसो की कमी के कारण फिल्म अधबीच में रुक गई. तीन साल के ठहराव के बाद पश्चिमी बंगाल सरकार की वित्तीय सहायता से फिल्म पूरी हुई. फिल्म निर्माण कार्य में यह उनका पहला प्रयास था. वर्ष 1955 में प्रदर्शित फिल्म ‘पाथेर पांचाली’ कोलकाता के सिनेमाघर मे लगभग 13 सप्ताह हाउसफुल रही. इस फिल्म को 11  इंटरनेशनल अवार्ड प्राप्त हुए थे. इस फिल्म की एक ख़ास विशेषता यह है की इस फिल्म की स्क्रिप्ट नहीं लिखी गई थी, रे ने इसके लिए कुछ नोट्स लिए थे और ड्रॉइंग्स की थी.  यह फिल्म बनाने के लिए रे ने अपनी बीमा पॉलिसी, ग्रामोफोन रिकॉर्ड और पत्नी विजया के जेवर बेच दिए थे. वे कहते थे की, “मुझे पश्चिमी और भारतीय शास्त्रीय संगीत दोनों में रुचि थी. मैं हर समय पश्चिमी वाद्य यंत्रों के साथ भारतीय वाद्य यंत्रों का मिश्रण करता हूं”.

सत्यजित कहते थे, “मेरी फिल्में केवल बंगाल में ही चलती हैं और मेरे दर्शक छोटे शहरों में स्थित शिक्षित मध्यम वर्ग है. मेरी फिल्में बॉम्बे, मद्रास और दिल्ली में भी चलती हैं क्योकि वहां भी बंगाली आबादी है”. उन्होंने यह भी कहा है कि “पाकिस्तान में भारतीय फिल्मों पर प्रतिबंध है, इसलिए हमारे फिल्मों का आधा बाजार चला गया हैं”. उनकी कुछ फिल्मे नाकाम भी रही है, इसपर उन्होंने कहा है कि, “विशेष रूप से फिल्मों के अंतिम चरण में मुझे हमेशा लगता है कि मैं हडबडा रहा हूं. जब आप अंतिम चरण में पहुंच रहे हो तो यह खतरनाक है, मेरे पहले की कुछ फिल्में केवल इसी कारण दोषपूर्ण रही हैं”. 

जाने-माने फिल्म निर्देशक श्याम बेनेगल का मानना है कि भारतीय सिनेमा को हमेशा ‘सत्यजीत रे के पहले और बाद’ के रूप में जाना जाएगा और ‘पाथेर पांचाली‘ के निर्देशक के फिल्म निर्माण की तकनीक का अनुकरण कोई फिल्म निर्देशक नहीं कर पाया है.

सत्यजीत रे की कुछ बेहतरीन फिल्में (Satyajit Ray Films)

  • पथेर पांचाली (1955)
  • अपराजितो (1956)
  • जलसा घर (1958)
  • अपुर संसार (1959)
  • कंचनजंघा (1962)
  • अभियान (1962)
  • चिड़ियाखाना (1967)
  • घटक की अजांत्रिक (1958)
  • भुवन शोम (1969)

साहित्यिक कृतियाँ ( Literary works )

  • रे ने बांग्ला भाषा के बाल-साहित्य में दो लोकप्रिय चरित्रों की रचना की जैसे गुप्तचर फेलुदा (ফেলুদা) और वैज्ञानिक प्रोफेसर शंकु.
  • सत्यजीत रे को पहेलियों और बहुअर्थी शब्दों के खेल से बहुत प्रेम था. इसे इनकी कहानियों में भी देखा जा सकता है. 
  • रे ने 1982 में जखन छोटो छिलम (जब मैं छोटा था) यह आत्मकथा लिखी.
  • इन्होंने फ़िल्मों के विषय पर कई पुस्तकें लिखी हैं, जिनमें से प्रमुख है आवर फ़िल्म्स, देयर फ़िल्म्स (Our Films, Their Films, हमारी फ़िल्में, उनकी फ़िल्में).
  •  1976 में ही इन्होंने चलचित्र नामक एक पुस्तक प्रकाशित की जिसमें सिनेमा के विभिन्न पहलुओं पर इनके चिंतन का संक्षिप्त विवरण है.
  • एकेई बोले शूटिंग यह पुस्तक और फिल्मों पर अन्य निबंध भी प्रकाशित हुए हैं.
  • रे ने कविताओं का एक संकलन तोड़ाय बाँधा घोड़ार डिम भी लिखा है, जिसमें लुइस कैरल की कविता जैबरवॉकी का अनुवाद भी शामिल है. 
  • इन्होंने बांग्ला में मुल्ला नसरुद्दीन की कहानियों का संकलन भी प्रकाशित किया है. 

सम्मान और पुरस्कार ( Satyajit Ray Honors and Awards)

  • पद्मश्री (1958)
  • पद्म भूषण (1965)
  • रमन मैग्सेसे पुरस्कार (1967)
  • स्टार ऑफ यूगोस्लाविया (1971)
  • डॉक्टर ऑफ लैटर्स (1973)
  • डी. लिट (रॉयल कॉलेज ऑफ आर्ट्स, लंदन- 1974)
  • पद्म विभूषण (ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय – 1976)
  • विशेष पुरस्कार (बर्लिन फ़िल्म समारोह – 1978 )
  • विशेष पुरस्कार (मॉस्को फ़िल्म समारोह – 1979)
  • डी. लिट. (बर्द्धमान विश्वविद्यालय, भारत – 1980 )
  • डी. लिट. (जादवपुर विश्वविद्यालय, भारत – 1980)
  • डॉक्टरेट (बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, भारत – 1981)
  • डी. लिट. (उत्तरी बंगाल विश्वविद्यालय, भारत – 1981)
  • होमाज़ अ सत्यजित राय (कान्स फिल्म समारोह – 1982)
  • विशेष गोल्डन लायन ऑफ सेंट मार्क (वैनिस फ़िल्म समारोह – 1982)
  • विद्यासागर पुरस्कार (पश्चिम बंगाल सरकार – 1982)
  • फ़ैलोशिप पुरस्कार (ब्रिटिश फ़िल्म संस्था – 1983)
  • डी. लिट. (कलकत्ता विश्वविद्यालय, भारत – 1985)
  • दादा साहेब फाल्के पुरस्कार (1985)
  • सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार (1985)
  • फ़ैलोशिप पुरस्कार (संगीत नाटक अकादमी, भारत – 1986)
  • डी. लिट. (रवीन्द्र भारती विश्वविद्यालय, भारत – 1987)
  • ऑस्कर (मोशन पिक्चर आर्टस एवं विज्ञान अकादमी – 1992)
  • भारतरत्न (1992)

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