कवि वृन्द जी का जीवन परिचय | Vrind (Poet) Biography In Hindi

कवि वृन्द जी का जीवन परिचय, रचनाएँ, कविताएँ
Vrind (Poet) Biography, Family, Rachnaye, Famous Poems In Hindi

हिंदी साहित्य के रीतकालीन कवियों में वृन्द जी का महत्वपूर्ण स्थान रहा है. वृन्द जी ने हिंदी साहित्य के कवि के रूप में अपनी काव्य रचनाओं के माध्यम से लोंगो के दिल में अपनी एक अलग ही जगह बनाई है. वृन्द जी ने अपने दोहों के माध्यम से लोगों को सच्चाई के मार्ग पर चलना सिखाया और साथ ही लोगों को मिल – जुल कर रहने का तरीका सिखाया कि मनुष्य को किस तरह से अपना जीवन सुखमय बनाना चाहिए और मनुष्य अपनी जिंदगी खुशपूर्वक कैसे व्यतीत कर सकता है. वृन्द जी ने दोहों के माध्यम से अपने विचारों को प्रदर्शित किया है.

बिंदु (Points)जानकारी (Information)
नाम (Name)वृन्दावनदास
जन्म (Date of Birth)1643 ईसवी
आयु70 वर्ष
जन्म स्थान (Birth Place)जोधपुर, राजस्थान
पिता का नाम (Father Name)रुप जी
माता का नाम (Mother Name)कौशल्या
पत्नी का नाम (Wife Name)नवंरगदे
पेशा (Occupation )हिंदी साहित्य के कवि
मृत्यु (Death)1707 ईसवी
मृत्यु स्थान (Death Place)किशनगढ

वृन्द जी का जीवन थोड़ा विवादास्पद है. लोगों का मानना है कि इनका जन्म सन 1643 ईसवी में राजस्थान के जोधपुर जिले के  मेड़ता नामक एक छोटे से गांव में हुआ था व 10 वर्ष की आयु में ये काशी आये और वहाँ तारा जी पंडित के पास रहकर साहित्य दर्शन किये और विविध विधाओं का ज्ञान भी प्राप्त किया और वहीँ पर रहकर वृन्द जी ने हिंदी साहित्य, हिंदी व्याकरण, वेदान्त, गणित आदि का ज्ञान प्राप्त किया और साथ ही काव्य रचनाओं का भी ज्ञान प्राप्त किया. रीतिकालीन परंपरा के अंन्तर्गत वृन्द जी का नाम बड़े आदर और सम्मान के साथ लिया जाता है. इनका पूरा नाम वृन्दावनदास था. वृन्द जी की माता का नाम कौशल्या और पिता का नाम रुप जी था. इनकी पत्नी का नाम नवंरगदे था.

कवि वृन्द जी ने अपनी रचनायें सरल, सुगम, मधुर और आसान भाषा में लिखी हैं. वृन्द जी को कविता लिखने की प्रेरणा अपने पिताजी से मिली. उनके पिता भी सुगम, मधुर भाषा में कविता लिखा करते थे. हिंदी साहित्य के महान कवि वृन्द जी मुगल सम्राट औरंगजेब के यहाँ दरबारी कवि भी रहे. वृन्द जी कविता सम्मलेन में जाया करते थे और कविता सम्मलेन में अपनी कविताओं को बड़े ही सुन्दर तरीके से प्रस्तुत किया करते थे. वृन्द जी की कविता को सुनकर सभा में बैठे हर व्यक्ति मंत्रमुग्ध हो जाते थे.

वृन्द जी को कविताओं के माध्यम से कई बार सम्मानित पुरस्कारों से नवाजा गया. इसके चलते वृन्द जी का कविता के विषय में मनोवल बढता गया और वृन्द जी श्रेष्ठ कवि के रूप में पहिचाने जाने लगे. ‘वृंद-सतसई कवि वृन्द जी की सबसे प्रसद्धि रचनाओं में से एक है. जिसमें 700 दोहे हैं.

वृन्द जी की मृत्यु

सन् 1707 ईसवी में किशनगढ़ के राजा राजसिंह ने मुशशान से वृन्द को माँग लिया था और उसी दौरान अपना योगदान देते हुए सन 1723 ईसवी में किशनगढ में ही इनका स्वर्गवास हो गया था.  

वृन्द जी की रचनायें

कवि वृन्द जी की प्रमुख 11 रचनायें हैं, जो इस प्रकार हैं – भारत कथा, पवन पचीसी, समेत शिखर छंद, यमक सतसई,  भाव पंचाशिका, शृंगार शिक्षा, वृन्द सतसई, वचनिका, सत्य स्वरूप, हितोपदेशाष्टक, हितोपदेश सन्धि

वृन्द जी के दोहे

वृन्द जी अपने दोहों के लिए पहचाने जाते हैं. वृन्द जी द्वारा लिखे हुए दोहों का संकलन ‘वृन्द विनोद सतसई’ में देखने को मिलता है. कुछ प्रमुख दोहे निम्नप्रकार हैं –

मूरख को हित के वचन, सुनि उपजत है कोप.
साँपहि दूध पिवाइये, वाके मुख विष ओप..

उत्तम विद्या लीजिये, जदपि नीच पाई होय.
परयो  अपावन ठौर में, कंचन तजय न कोय..

निरस बात, सोई सरस, जहाँ होय हिय हेत.
गारी प्यारी लगै, ज्यों-ज्यों समधन देत..  

सबै सहायक सबल के, कोउ न निबल सहाय.
पवन जगावत आग कौ, दीपहिं देत बुझाय..

अति हठ मत कर, हठ बढ़ै, बात न करिहै कोय.
ज्यौं- ज्यौं भीजै कामरी, त्यौं – त्यौं भारी होय..

कुल कपूत जान्यो परै, लखि-सुभ लच्छन गात.
होनहार बिरवान के, होत चीकने पात॥

अति हठ मत कर हठ बढे, बात न करिहै कोय.
ज्यौं-ज्यौं भीजै कामरी, त्यौं-त्यौं भारी होय॥

करत करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान.
रसरी आवत जात ते सिल पर परत निशान..

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