झलकारी बाई का जीवन परिचय | Jhalkari Bai Biography in Hindi

झाँसी की वीरांगना झलकारी बाई की जीवनी, इतिहास (जन्म, मृत्यु, कहानी) | Jhalkari Bai Biography,History, Birth, Death Story in Hindi

इतिहास के पृष्ठों में खोयी झलकारी बाई नामक एक अविश्वसनीय योद्धा और महिला सैनिक थी. झलकारी बाई ने झाँसी के युद्ध में भारतीय बगावत के समय महत्वपूर्ण योगदान दिया था. अपनी विनम्र पृष्ठभूमि का पालन करते हुए वह महान रानी लक्ष्मीबाई की सलाहकार बनी और रानी लक्ष्मी बाई की सेना के कई महत्वपूर्ण निर्णय भी लिए. वास्तव में, वह इतनी साहसी थी कि झांसी के किले की लड़ाई के दौरान, उसने खुद को रानी लक्ष्मीबाई के रूप में छिपा लिया और सेना को आदेश लिया. इस प्रकार असली रानी को इस दौरान भागने का मौका प्रदान किया था. 1857 के विद्रोह के दौरान झलकारी बाई ने अपने बहादुरी और साहस से ब्रिटिश सेना के दिल में भय उत्पन्न कर दिया था.

बिंदु(Points)जानकारी (Information)
नाम (Name)झलकारी बाई
जन्म (Birth) 22 नवंबर 1830
जन्म स्थान(Birth Place) झांसी के पास भोजला गांव
पिता का नाम (Father Name)सडोबा सिंह
माता का नाम (Mother Name)जमुना देवी
जाति (Caste)कोरी
प्रसिद्धि कारण‎झाँसी का युद्ध
मृत्यु दिनांक(Death Date)4 अप्रैल 1857 (‎झांसी)

झलकारी बाई जन्म और प्रारंभिक जीवन (Jhalkari Bai Birth and Early Life)

झलकारी बाई का जन्म 22 नवंबर 1830 को झांसी के पास भोजला गांव में एक गरीब परिवार में हुआ था. इनके पिता का नाम सडोबा सिंह और माता का नाम जमुना देवी था. जो कोरी जाति(दलित समुदाय) से सम्बन्ध रखते हैं. झलकारी बाई अपने माता-पिता की एकलौती संतान थी. झलकारी बाई के बचपन में ही उनकी माँ का निधन हो गया था. इनका परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी. झलकारी बाई बचपन से ही घुड़सवारी और हथियार चलाने में कुशल थी. अपने परिवार की आर्थिक स्थिति के कारण झलकारी बाई प्रारंभिक शिक्षा ग्रहण नहीं कर पाई थी. झलकारी बाई के पिता ने एक बेटे की तरह झलकारी बाई का पालन पोषण किया.

एक बार गाँव में जब डकैतों ने हमला किया था तो झलकारी बाई ने बहादुरी से सामना किया और गाँव में एक बार झलकारी बाई ने एक बाघ को मार दिया था.

झलकारी बाई का विवाह एक तोपची सैनिक पूरण सिंह से हुआ था. जो रानी लक्ष्मीबाई के ही तोपखाने की रखवाली किया करते थे. पूरण सिंह ने ही झलकारी बाई की मुलाकात रानीलक्ष्मी बाई से कराई थी. जिसके बाद झलकारी बाई सेना में शामिल हो गयी और रानी लक्ष्मी बाई की विश्वासपात्र बन गई. जहाँ झलकारी बाई ने बंदूक चलाना, तोप चलाना और तलवारबाजी का प्रशिक्षण लिया.

Jhalkari Bai Biography in Hindi

झलकारी बाई और स्वतंत्रता संग्राम (Jhalkari Bai and 1857 Revolution)

लार्ड डलहौजी की हड़प नीति के कारण रानी लक्ष्मी बाई अपने उत्तराधिकारी को गोद नहीं ले सकती थी. इसी के विरोध ने रानी लक्ष्मीबाई और उनकी सेना ने अंग्रेजो के खिलाफ विद्रोह (1857 स्वतंत्रता संग्राम) का निर्णय लिया. परन्तु महारानी लक्ष्मीबाई के ही सेनापति में से एक दूल्हेराव ने अंग्रेजो के लिए किले का द्वार खोल दिया. जिसके बाद ब्रिटिश आर्मी ने किले पर हमला कर दिया. जब इस लड़ाई में रानी लक्ष्मीबाई की हार निश्चित हो रही थी तो सेनापतियों और झलकारी बाई ने रानी लक्ष्मी बाई को किले से सुरक्षित निकलने की सलाह दी. जिसके बाद रानी लक्ष्मी बाई अपने कुछ विश्वास पात्र सैनिकों के साथ झाँसी से दूर निकल गयी.

झलकारी बाई ने अंग्रेजों को धोका देने के लिए रानी लक्ष्मी बाई की तरह वेशभूषा धारण कर झाँसी की सेना का नेतृत्व किया. इस लड़ाई में पूरण सिंह भी वीरगति को प्राप्त हो गए थे.

झलकारी बाई मृत्यु (Jhalkari Bai Death)

झलकारी बाई की मृत्यु को लेकर आज भी संशय का विषय हैं. कुछ इतिहासकरों का मानना हैं कि रानी लक्ष्मी बाई को सुरक्षित किले से बाहर निकालने के दौरान अंग्रेजों के द्वारा बंदी बना लिया गया था परन्तु बाद में उन्हें अंग्रेजों ने छोड़ दिया था.

इतिहासकारों के अनुसार झलकारी बाई झाँसी के किले में ही अंग्रेजों से युद्ध करते हुए वीरगति को प्राप्त हुई थी.

भारत सरकार द्वारा झलकारीबाई के नाम का पोस्ट और टेलीग्राम स्टेम्प भी जारी किया गया है. राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने झलकारी बाई की बहादुरी को अपनी पंक्तियों के माध्यम से विस्तृत किया हैं.

“जा कर रण में ललकारी थी,
वह तो झाँसी की झलकारी थी,
गोरो से लड़ना सिखा गयी,
है इतिहास में झलक रही,
वह भारत की ही नारी थी!!”

Jhalkari Bai Biography in Hindi
Jhalkari Bai Postage and Statue

झलकारी बाई का समाधि स्थल (Jhalkari Bai Samadhi Sthal)

झलकारी बाई भारतीय नारियों में वीरता और साहस का प्रतीक हैं. उनकी पुण्यतिथि को कोली समाज द्वारा शहीद दिवस के रूप में मनाया जाता हैं. इसके अलावा पुरातत्व विभाग द्वारा झाँसी के पंचमहल म्यूजियम में झलकारी बाई से जुडी वस्तुएँ रखी गई हैं. झलकारी बाई की एक प्रतिमा समाधी स्थल के रूप में भोपाल के गुरु तेगबहादुर कॉम्प्लेक्स में स्थापित की गयी हैं. जिसका अनावरण भारत के मौजूदा राष्ट्रपति रामनाथ कौविंद द्वारा 10 नवम्बर 2017 को किया गया था.

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